स्वाधीनता की देवी | Swadheenta Ki Devi

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Swadheenta Ki Devi by श्रीयुत रामप्रसाद - Shreeyut Ramprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चाद्य-फाड] १ ০০ करती । पंत, ऊसर, चरागद, भूमिफर, आदि के सम्बन्धे बातें हुआ करती थीं भीर कमो कभी फौजी भर्तीफो पात भी छिड जाया करती थी, फ्योंकि उस सम्रय फे राज्य-नियमों कै अहुसार कसी फौज फे लिये किखानों को ही अपने लड़फे देने पड़ते थें। उस समय में कुछ भी न समम्ध सफती थी कि वेचारे किसानों पर इतना अत्याचार क्‍यों किया जाता था ?” “वहुधा मैं छिपफर निकर कै प्रामों मे जाया फरती भीर किसानों फी भ्नेपदिर्यो को देखा करती--करीं द्ध धास पर पदे हुए जाँल रदे हैं, पास ही फुड़ैका ढेर না हुआ है। देचारे दिनभर थफेले पड़े पड़े मुखसे कदराया करते, क्योंकि और सप लोग णेतदोपर चले जाते थे | छोटे छोटे बच्चे चीचमें फेला करते भौर सुभरों तथा कुत्तों फे जूठे यथरतनों में पानी पिया करते थे ! गिरजाघरों में जाकर ये सव फिसान भांसु यहा यद्दा फर परमात्मा से प्रार्थना फिया करते थे कि--है भगवन्‌ ! इन फष्टों को दुर करो और दया करो फि ऐसा दुःखमय जीवन फिसी को भी न मिले ।” “जब द साठ प फी थी, उसी समय से मेरे मन में न्याय अन्याय का प्रश्न दृढ़ दोने लगा था ।”? अन्य यालकों- फी भांति फेधोराइन अपने आप को यड़ा ग समझती थी और न লী उत्तम उत्तम पदार्थो का भोग करै की इच्छा रखती थी। उसका यद्द स्वभाव था कि जो कुछ पाती, उसे गरीय यारुको कोद दैती। जवकमीन्ये




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