चरकसंहिता | Charaksanhita

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Charaksanhita by मोतीलाल बनारसीदास - Motilal Banarsidas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय आग्रिवश का प्रश्ननहिताहिते आहार की पहिचान क्या है पृष्ठ. | २१६ भगवान्‌ आत्रेय का उत्तर २२० अभिवेश का प्रश्न ৪1 सगवान्‌ आत्रेय का उत्तर्‌ 1 आद्वारविधिविशेषों की लक्षण बा अवयव द्वारा व्याख्या पि आहार मे हिततम द्वव्यों का निदेश२२१ अहिततम द्रव्य (५ अप्रथ गण २२२ उनका चिकित्सा में उपयोग २२५ | पथ्यापथ्य का सत्षणु २२६ द्रव्य के खमाव तथा मात्रा आदि के अनुसार कम करना चाहिये ,, । अभिवेश का प्रश्न-आसवद्रब्यों का लक्षण सम्बन्धी हे त्रेय का उत्तर रः & आसवयोनियां হত সমান ২ आसवशब्द की निरुक्ति अं संयोग संस्कार दिं के अनुसार आसवों का अपना कम करना ,, घड् आतसवों के सामान्वयुण॒ 99 ध्याय विषय ১ 75 रद आत्रयमदकाप्यीय अध्याय सहर्षियों की समिति में रस द्वारा आदारज्ञान की कथा २२६ भद्रकाप्य का मत-एक ही रस है. ১, शाकुन्तेय ब्राह्मण का मत-दो रख हैं ,, पूर्णाक्ष मौद॒ल्य का मत-तीन रस है ,, हिरण्याज्ञ कौशिक का मत-चार হল ই ,, कुमारशिरा भरद्वाज का मत-पांच रस हैं,, वार्योविद राजषि का मत-छह दस ই +, লিলি वेदेह का मत-सात रख हैं. ,, वडिश धामागव का मत-च्राठ रव दै ,, वाहीकभिषक्‌ काङ्कायन का मत- असंख्य रस हैं... हे भगवान्‌ अंत्रेय का निर्णयसिद्धान्त ,, एक रस है इत्यादि पत्तों का खएडन २३० सार रस नहीं ১, रसों का अव्यक्क होना २३१ श्मन्तिम काङ्कायन के मत क! खण्डन २३२ द्र्य का वर्णन = विषयानुक्रमणिका । विषय पृष्ठ, | | पार्थिव द्रव्य २३२ | जलीय दन्य २३३ | आमिय द्रव्य ১) | वायव्य द्रव्य ৯) आकाशीय द्रव्य | सव द्रव्य औषध हैं রর द्रव्यों के कम का लक्षण हैँ द्रव्योकेवीयै „+ ১ द्रव्यो के अधिकरण ,, +} काल का लक्षण र उपाय का लक्षण ध फल का लक्षण । + | रस दारा दब्यों के६ ३ प्रकार के भद्‌ २३४ दो रस वाले १५ द्रव्य थे | तीन रख वाले २० द्रच्य ১৯ - | चार्‌ ॐ १५ 39 99 पांच 93 2 3; २३४ एक 33 ६ 59 23 | छद रप वाला १, 4৫ रसानुरसकल्पना से अपरिसंख्येयता ,, उपहार 52 चिकित्सा में रख की कल्पनायें. २३६ रसविकल्प तथा दोषविऋलप के जानने का प्रयोजन রঃ रस अनुरत का लक्षण ४ चिकित्सा की सिद्धि में उपायभुत पर आदि गुण को परत्व अपरत्व का लक्षण २३७ युक्ति का लक्षण ५9 संख्या का ,, ५9 सेयोग का ,, गो विमासका,, ५) परिमाण का लक्षण २३८ संस्कार का ,, ५ अभ्यास का 5৪ हि पर आदि गुणों के ज्ञान का प्रयोजन ,, दव्य के गुरो का रमे उपचार है ,, प्रकरण आदि के अनुसार शाश्न का . शर्थ जानना चाहिये ১ पांचभौतिक रस छुद केसे हो जाते हैं ,, जिस २ भूत की अधिकता से जिस रस की उत्पत्ति होती है. ২২২ रसों की गति ১ | रस वीय आदि का परस्पर मिन्नता & विषय पृष्ठ. | रसों के गुण कर्म २३६ | मधुररस के गुण कर्म हर | इसके अतियोग से हानि. 9 | अम्लरस के गुण कर्म २४० | इसके अतियोग से हानि ५2 | लवणरस के गुण कमं २४१ | इसके अतियोग से हानि ৮ | कटुरस के गुणकम 9, | इसके अतियोग से हानि /) | तिक्वरस के गुणकम २४२ । इसके तियोग घे हानि ३8 | कषायर के गुण कम १) इसके अतियोग से हानि 4১ | विधिपूर्वक प्रयुक्ष पड़स का प्रयोजच २४३ रसोपदेश्ष द्वारा गुणुसंग्रह किनका जानना + | उदाहरण बे । रसोपदेश द्वारा सब द्रव्यों के न जान सकने में उदाहरण हे | गुण द्वारा रसों की हीनमध्योत्कृष्टता २४४ रख के विपाक का निर्देश मधुराम्ललवण रस का वात आदि का मोक्ष सुख से कराना २४५ | कटुतिक्त कषाय रस का वात आदि के मोक्त म सकावट करना »১ | विपाको के पृथक्‌ २ गुण ५) | द्रव्यो के गुण की विभिन्नता से विपाक के लक्षण की अल्प मध्योत्कूष्टता जानना দি | वीयं के भेद र | वीये का लक्षण न से ज्ञान २४६ | प्रभाव का लक्षण और उदाइरण ,, | द्रव्य रस आदि द्वारा कमें करते हैं. २४७ | रस आदि का परस्पर स्वाभाविक बल ,, | ल्य रसो का विज्ञान 2১. | मघुररस 9) ४9 अम्लरस 52 19 | सवणरस 39 38 | कटु रस 3} 88 तिक्करस 13 75. कषायरस १ ` , 5১




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