Book Image : पद्य - रत्नाकर  - Padaya Ratnaakara

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जाए अरिषड्-वर्ग पर विजय प्राप्त करेगा, तभी उसे परमात्मा की श्राप्ति हो सकती है। इस संप्रदाय के अन्य कवि हैं--नामदेव, गुरुतानक, रेदास, सुन्दरदास, धर्मंदास, दादू दयाल ओदि । जायसी ज्ञान की अपेक्षा प्रेम को अधिक महत्व देते थे। उनका सिद्धांत था कि मनुष्य प्रेम के दवारा ही सांसारिक बंधनों से मुक्त हो सकता है। परमात्मा भी पवित्नप्रेम के वशीभूत हो जाते हैं। उनको प्राप्त करने के पूर्व तत्संबंधी ज्ञान प्राप्तं करना चाहिए। तदुपरांत ईश्वर को पाने की जिज्ञासा करनी चाहिए। इस जिज्ञासा की पूति के लिए साधना की आवश्यकता है। साधना का मार्ग बड़ा विकृढ है। साधना के मांगे में उपस्थित होनेवाले विष्त-बाधाओं का सामना करते हुए जब सफलता प्राप्त करगे तभी परमात्मा से मिलन होगा । जायसी सूफ़ी मत के अनुयाय थे । उनका ' पद्मावत ' महाकान्य सूफ़ीदर्शन का सुन्दर नमूना है। हिन्दुओं की एक सुप्रसिदृध ऐतिहासिक घटना को कथावस्तु बनाकर उसमें सूफ़ो सिद्धांतों का विभिन्न रूपकों द्वारा अच्छा प्रतिपादन किया है। इस काव्य की भाषा अवधि है। अवधि भाषा का यही प्रथम महाकाव्य है। दोहा-छप्पयवाली शैली में रचित इस प्रेम-काव्य का हिन्दी साहित्य में अपना महत्वपु्ण स्थान है । सूफ़ी मतानुसार यह समस्त विश्व एक रहस्यमय प्रेमसूत्र में गंथा हुआ है, जिसके माध्यम से जीव ब्रहम को उपलब्धि कर सकता है । प्रेम मार्गी शाखा की अन्य कृतियो मे कुतुबन की मृगावती, मञ्चन कौ मधुमालती, शेख नबी का ज्ञानदीष, उसमान कौ चित्रावली, नूर मुहम्मद की इद्रावती तथा फाज्रिलशाहं कत प्रेम-~रतनं उल्लेखनीय हैं । उपयुक्त दोनों संप्रदायो ने निराकार एवं निर्गुण ईश्वर की उपासना पर जोर दिया है। उनका विश्वास है कि ईश्वर पत्थर और पहाड़ में नहीं हैं, बल्कि मनुष्य के हृदय में निवास करते हैं जिन्हें हम प्रेम व




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