अथ मीमांश दर्शनम् | Ath Mimans Darshanam
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.08 MB
कुल पष्ठ :
438
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मधसो5ध्याय: 1 ७
परधोगस्थ परम्ू ॥ र४ ॥
प० क्र०--( अयोगरव ) पचति, करोति, क्रिया आदि उच्चारण
के भाव से हैं ।
भा०--'पचति' पकाता है; 'करोति, करता है यदद उच्चारण के .
छामिध्राय से हैं नकि बनाता है अर्थात, उसका मूल
कत्ती है ऋ्तः शब्द नित्य है |
झादित्ययव्यो गपद्यम् ॥ १४ ॥
म्र० क्रण- ( योग पथमू ) एक शब्द का छनेक देशों में सम
«काल में होना ( 'आदित्यनप् ) जैसे सूर्य सममाना
चाहिये 1
भा०--जैसे एक सूर्य एक समय में नेक देशों में एक समय में +
दिखाई देता है इसी प्रकार शब्द्स्वरूप से नानात्व
को प्राप्त नहीं अतः नित्य दै |
सं०--दशबें सूत्र का उत्तर यदद है ।
न
शद्ान्तर भविकार! ॥ १६ |
प्र० क्र०- अधिकार: ) जहां 'य' के स्थान में 'इ” होता दे बद
विकार वश नहीं किन्ठु ( शब्दान्तर ) इकार से झन्य
शब्द की ओर है. । ः
भा०--'य' झक्तर यदि 'इ' अक्षर का विकार होंतानतों यकार के
भ्रहण में इकार का नियम पूर्वक श्रहण दोना चाहिये
था क्योंकि जिसका .जो विकार है वह झपनी
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