अथ मीमांश दर्शनम् | Ath Mimans Darshanam

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Ath Mimans Darshanam by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मधसो5ध्याय: 1 ७ परधोगस्थ परम्‌ू ॥ र४ ॥ प० क्र०--( अयोगरव ) पचति, करोति, क्रिया आदि उच्चारण के भाव से हैं । भा०--'पचति' पकाता है; 'करोति, करता है यदद उच्चारण के . छामिध्राय से हैं नकि बनाता है अर्थात, उसका मूल कत्ती है ऋ्तः शब्द नित्य है | झादित्ययव्यो गपद्यम्‌ ॥ १४ ॥ म्र० क्रण- ( योग पथमू ) एक शब्द का छनेक देशों में सम «काल में होना ( 'आदित्यनप्‌ ) जैसे सूर्य सममाना चाहिये 1 भा०--जैसे एक सूर्य एक समय में नेक देशों में एक समय में + दिखाई देता है इसी प्रकार शब्द्स्वरूप से नानात्व को प्राप्त नहीं अतः नित्य दै | सं०--दशबें सूत्र का उत्तर यदद है । न शद्ान्तर भविकार! ॥ १६ | प्र० क्र०- अधिकार: ) जहां 'य' के स्थान में 'इ” होता दे बद विकार वश नहीं किन्ठु ( शब्दान्तर ) इकार से झन्य शब्द की ओर है. । ः भा०--'य' झक्तर यदि 'इ' अक्षर का विकार होंतानतों यकार के भ्रहण में इकार का नियम पूर्वक श्रहण दोना चाहिये था क्योंकि जिसका .जो विकार है वह झपनी




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