प्रतिनिधि राजनीतिक विचारक | Pratinidhi Rajnitik Vicharak
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
383
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लट ९
विरोध था राजनीसिजा की अक्षमता, अजञानता, स्वाधपरक गुटबंदी तथा उसके झापसी
सधर्षों को उसने कटु आलोचना की है। प्लेटो ते प्रजाताबजिक व्यक्ति का चित्रण इस प्रवपर
किया है; “(वहु) यदि एक क्षण गराब के नशे में चूर है तो दूसरे ही क्षण परदरजगार,
कभी खेलकूद मे भीषण संलग्न तो कभी उससे पूर्णतः: विमुख ओर फिर दोतों मे ही लग
दर्शन के अध्ययन में रत + श्रा 'राजनीनिज है और खड़े होकर विता सोचेन्सस्मर्स व्यर्थ
बकवास करता है ते कल का रवीर गोद्धा ।/
हात्कालिक राजनीतिक जीवन को बड़ी गहराई तथा बहूते बारीकी के साथ
समीप से ग्रव्ययत करने पर प्लेटो का बडी निष्कर्ष था कि एथेन्स की उस[दर्तित, गरड्ित एवं
ग्रपानजनक स्थिति के लिए ऐसे ही प्रजातातजिक व्यदित उत्तरदायी थे। कुछ ग्रालोचकों
में प्लेटो के प्रजात॑ंत विशेषी होने के लिए उसका अभिजात कुच में! जन्म ब्न्नलाया!
উ। इसके खंडन में सेवाइत ते बड़ा हो सुदर तक दिया है : “द्रजातंद में उसकी अनास्था
अरस्तू से कही कम थी जो न तो अभिजात कुल में पैदा हुआ था श्रौर वे एशेन्स का नित्रानी'
था | ' स्पष्ट है उसके प्रजात॑त्र विरोधी विचार परिस्थितियों के ही सीधे परिणाम थे ।
प्लेटो के विचारों पर सर्वाधिक प्रभाव यूकरात का पडा! प्लेटों की झपनाई
संवाद पद्धति सुकरात की ही देव थी। इन मंवादों में सुकरात ही प्रमुख पारद) सवनी
का महू संज्षिप्त-सा वाक्यांश प्लेटो पर सुकरात के प्रणाव को पूर्ण त; स्पस्ट कर देता हैं कि
“प्नेटो मे भूकरान पूनः जीविते हप्र ই |
प्रसृ ससस्या---प्लेटो के ससय से न केवल एथेन्स बरनिकि समूची यूनानी सन्ता
पतनोन्युख थी। यूतानी नागरिक होने के कारण इस पनन में उसका चि6तित होना!
स्वाभाविक ही था । किंतु प्लेटो इससे सी अधिक दार्ग निक एवं शादुक चित्क नी जा ।
उसने दगर सज्यों की आलोचनात्मक समीक्षा की : शासव अक्षम पुव प्रयोग्य ववि
द्वारा संचालित था । गुटबंदियों एवं दलीय हिंतों में संघर्य के कारण नगर-रा्य सरकारें
सापेक्ष रूप से श्रस्थिर थी । छोटे-से-छोटे रुगर-राज्य में भी संपत्ति के आधार पर जो दो
राज्य वन गए बे--जह जिनके पात्न संपत्ति थी और वह जो निर्धव थे (निर्वतों का राज्य)
উল युद्ध की स्थिति थी । तागरिकों को शिक्षा के साव-द्वीन््याब प्रक्ारकों का प्रशिक्षण
जी ग्रावश्यक था | झत, प्लेटो की समस्या एक ऐसी व्यवस्था का निवारण शा जो मोटे
नौर पर स्थायी हो, जिसमें हासन-संचालन योग्यतम व्यक्तियों में निहित ही, जहाँ प्रत्येक
व्यक्ति की अपने प्राक्वतिक गुणों के झनुमार ही काये दिया जाय, जिसमें संपत्ति की एक
समुचित व्यवस्य निनि की जः सके तवया देसी शिक्षा-व्यवस्था को बनाया जा सके जो
श्रेष्ठ वागरिकों तथा श्रेष्ठ शासकों दोनों के निर्माण में समर्थ हो । प्रब्त था : ऐसे राज्य
का क्या स्वरूप हो
रिपब्लिक में प्लेटो ने इसी समस्या का समाधान अस्तुत किया है। प्रीफेसर
नेटिलक्षिय ने लिखा है : “बह रिपब्लिक उस व्यक्ति के उत्पाह हारा लिखी' गईं है जो'
केवल स्तवे जीवन पर ही विचार नहीं कर रहा था बल्कि जो उसे यसुधारते झौर उसमें
अतिका'री परिवर्तेत करने के लिए भअर्त्यत' व्याकुल था। प्रत्येक गंभीर खराबी को ध्यान
में रखकर हो इसे लिखा गया है।
ओ
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