दिव्या | Divyaa
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ :
19.05 MB
कुल पृष्ठ :
284
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मधुपव धर न्यूनता के कारण गण सर्वश्रेष्ठ खडगधारी का सम्मान श्रायुष्मान सझद को देता है । श्वेत पुष्पों श्र हरित किसलय से बने मुकुट की श्रोर संकेत कर उन्होंने कदद-- नगरश्री देवी मल्लिका की शिष्याश्रों में जो _ युवती कला की प्रतियोगिता में सरस्वती-पु्नी का सम्मान प्राप्त करेगी वही अपने हॉँथों यह मुझुट सर्वश्रेष्ठ खड्गधारी को प्रदान करेगी | ? कक चारण के शंखनाद करने पर जन समूह में झ्ानन्दोल्लास से जय का कोलाइल उठ खड़ा हुमा | युवक श्रमिवादन कर वेदी के नीचे बा गये । परन्तु प्रथुवेन मददासेनापति के सन के सम्मुख खड़ा रहा । खड्ग नासिका के सम्मुख रख मस्तक शुका प्रथुततेन ने श्रार्थना कौ-- सें महाश्रेष्टि प्रेस्थ का पुत्र पधुसेन परम भट्टारक गणपति के सम्पुख निवेदन की श्राशा चाहता हूँ । महासेनानी की जिशासापूण दृष्टि के उत्तर में उसने निवेदन किया-- मैं पूथुसेन परम मद्दारक गणपति की श्राज्ञ से गण के विचाराथ निवेदन करता हूँ। श्रपने वामपक्ष में व्यर्थ प्रहार कर मैंने अपनी शक्ति का अपब्यय नहीं किया । गणपति श्र सदस्य देखें मैंने केवल पाँच शत्रुत्ओों का नहीं श्रपिहु कदली स्तम्भ के रूप में छठे का भी सामना किया है । महासेनापति की श्रनुमति से मैं दिखांना चाहता हूँ । मणड्प को चाम दिशा में स्तम्भ के सभीप जा उसके आश्रय खड़े कदली इंच को ने दिला दिया कदली स्तम्भ खणइ-खरदइ हो गिर पड़ा । इस झापूर्व खड्ग-कौशल आर हस्त-लाघव की में जन समूह से साधु- चाद के उल्लास का रव उठ खड़ा हुआ । विनय से मस्तक छुका प्रधुसेन ने महासेनानी को सम्बोधन किया-- देव इस शत्र का मी मैंने परामव किया है । मैं देव का. निणुय चाहता हूँ । विस्मय के उच्छुवास में अपने आसन से उठ प्रथुसेन के कंधे पर . हाथ रख मददासेनापति बोले-- मेरे निणुय में भूल थी । श्रायुष्मान
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