प्रेमाश्रम | Premashram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
620
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)= ~
, श्वाने ~स, कह दिया कि जवान मत खोरो ।
मनोहर अवतक छुपचाप खड़ा था । प्रभाशहु्की वातं शुन
'कर उसे आशा हुई थी कि यहां आना निष्फल नहीं हुआ । उनकी
'विनयशीलताने उसे चशोभत कर लिया था। ज्ञामशंकर्के कट
ध्यवहारफे सामने प्रशार्शकरकी नम्नता उसे देवोचित प्रतीत होती
थी |5सके हृदयमें उत्कण्ठा हदो रदी थी जि अपना सर्वस्व लाकर
इनके सामने स्ख दू सोर ऋष्ट दू कि यद मेरौ आस्से जडे सर-
कारी भेंट है। लेकित जानशंकरके अन्तिम शब्दोंने इन भाव-
नार्भोकरो पद्दछित सर दिया ! विरोपतः कादिरमियांका अपमान
असुद्य हो गया। तेवर चद्लकर योछा, दादा, इस दरवारसे
अब द्या घम 55 गया। चलो भगवानकी जो इच्छा होगी धह
होगा । जिसने मुह चोरा है पह खानेकों मी देगा ¦ नदीं तो भील,
प्रदेश तो फहीं नहीं गया है |
यह ककर उसने कादिरका हाथ पकड़ा ओर उसे जवरदस्ती
खींचता हुआ दीवानखानेसे बाहर निकल गया। शानशहुरकों इस
खमय इतना क्रोध आ रहा था कि यदि काननका भय न होता +
तो वह उसे जीता चुनवा देने । अगर इसका कुछ अ'श मनोहरको
डांटने फट कारनेमें निकल जाता तो कदाचित् उसकी ज्वा
कुछ शान्त-हो जाती, किन्तु अब उसे हृदयमें खोलनेके सिधा
निकलनेका कोई रास्ता न था। उनकी दशा उस बालककी-सी -
हो रदी थी जिसका हपजोली उसे दात काटकर भाग गया हो ।
इस छामसे उन्हें शान्ति न होती थी कि यै इस भयुष्यके भाग्यका
परिधाता हूं, आज इसे पेरोंतले कुचछ सकता हूं। क्रोधकों
डुर्वचनसे विशेष रुचि होती है।
ज्वालासिंद मौनी बने वै थे उन्दे' आश्चय्यं हो रदा था
कि श्ानशदभरे इतनी दयाहीन स्वार्थपरता कदसि आ , ययी 1
अभी क्षण भर पहले, यह मदाशय न्याय और छोकलेबाका कैसा
महत्वपूर्ण उल्लेख कर रहे थे। इतनी ही देरमें ,यह कायापलट !
User Reviews
No Reviews | Add Yours...