त्रिदोष मीमांसा | Tridosh-Mimansa

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Tridosh-Mimansa by स्वामी हरिशारानानंद वैध - Swami Harisharananad Vaidh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मध्यकालीन इनिदास झ सा मोखा चारिय-्प्राकत नाम के पुनवेष्ठ आत्रेय एक प्रसिद्ध श्रष्यापक थे । इन आत्रिय जी का समय बौद्ध के कुछ पूर्व है । क्योंकि आगे चलकर उसी अन्थ में जीवक नाम के एक विद्वाद्‌ का उल्लेख श्ाता हैं जिसको श्रात्रेय जी का शिष्य लिखा है । यह वेय बोद्ध का समकालीन हुआ हैं जो बीद्धमतावलम्बी हागया था । इसने बौद्ध सम्प्रदाय में चिकित्सा द्वारा अच्छा नाम शाप्त किया था । चात्रियजी के छः प्रमुख शिष्य ओर हुए हैं आनिवेश मेल जातुकर्ण पाराशर क्षरपाणि हरात जिनका उल्लेख आयुर्वेद अन्यों में मिलता है पर जीवकका उल्लेख नहीं मिलता । सम्मत्र है कि इसके गोद्ध मतावलम्बी हाजाने पर इसको वैदिक मतावलम्बी चिकित्सकों ने अपने अन्यों में नाम लेना उचिंत न समका हो क्योंकि बौद्ध अन्थों ने भी ऐसा ही किया है । उन्होंने मी थोनय जी के किसी घौर शिष्य का नाम अपने अन्य में उल्लेख नहीं किया । जज एक शोर पह्षपात हैं तो दूसरी ओर मी होना स्त्रभाविक ही है क्योंकि उस समय का वायु मण्डल पक्षपात पूर्ण था निष्पक्ष विचार किसी वात पर नहीं रवखे जाते थे अपने २ सम्प्रदाय का पक्ष हरएक व्यक्ति करता था | के व्यक्ति कद सकते हैं कि थात्रिय ऋषि का समय आज से ढाई इजार वर्ष पूवे नहीं बल्कि इस से बहुत प्राचीन नोट - जातक के जीवन चरित्र पर ए६ छोटी सी ऐतिहासिक पुस्तक समालोचनार्थ चाई हैं जिसपर आयुर्वेद विज्ञान कि ् शक के मइ १८३२९ के थक में अरकाश डाला गया है




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