प्राचीन हिंदी जैन कवि | Prachin Hindi Jain Kavi

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बनारसी दास जैन - Banarsi Das Jain

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मूलचंद - Moolchand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कविवंर घनारसीदास 3 কস পপ উট ২০ ३३५७ ९.#ज३४ ३-४०. भ ५ वालक षनारसीदास की वुद्धि घड़ी तीत्र थी |. २-३ वर्ष सें ही उन्होंने कई पुस्तकों का अध्ययन करके अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया उन्होंने द्श बष की आयु तक ध्यान पूर्वक अध्ययन किया । उस समय मुगलों के प्रताप का सितारा चमक रहा था उनके अत्याचारों के भय से पीड़ित होकर गृहस्थं को अपने बालक चालिकाओं का विवाह छोटी ही आयु में करना पड़ता था इसलिए १० वर्ष की आयु में ही आपका चिचाह कर दिया गया.। विवाह के पश्चात्‌ कुछ समय तक आपका अध्ययन बंद रहा,। १७ बर्ष की आयुमें आपने पं० देवीदासजी के निकट फिर से पढ़ना भारंभ किया इस समय उनका कायं एकमा पद्ना ही था 1 उन्होंने निम्न-लिखित ग्रन्थों का अध्ययन किया था । पटी नाम माला शत दोय, ओर अनेकारथ अवलोय ज्योतिष अलंकार रघु कोक, खंड स्फुट शत चार छोक युवावस्था ओर पतन थुवाचस्था जीवन में एक ही घार आती है उसे पाकर संयमित रहना टेढ़ी खीर है । नदी के प्रवल पूर में पैरोको स्थिर रख सकना किसी विरले मनुष्य का ही काय है। ल्‍ घनारसीदासजी अब जवान हो गए थे वे यौवन के वेग को नहीं सँभाल सके । उनके पास संपति थी। वे स्वतंत्र थे और, अपने पिता के इकलौते पुत्र थे। यह सभी सामग्री उनके बिगड़ने के लिए पर्याप्त थी । बस क्या था वे मदोन्मत्त हो गए। उनके सिर पर इश्क वाजी का नशा चद्‌ गया 4




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