कर्मस्तव दूसरा कर्मग्रन्थ | Karmastav-dusra Karmagranth

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Karmastav-dusra Karmagranth  by आत्मानन्द जैन - Atmanand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निवेदन । | क पाठक ! यद एसरे कमेग्रन्थ का हिन्दी श्ज्युवाद्‌ मूल तथा छाया सहित आपकी सेचाम उपस्थित किया जाता है। पहिले फरममग्रन्थ के वाद दूसरे कमग्न्‍्थ का अध्ययन परमावश्यक है । क्योंकि इस फ बिना पढ़े तीसरा आदि अगले कर्मग्रन्‍्थोम तथा कम्मपयढी, पश्चसम्रद आदि आकर ग्रन्थों मे प्रवेश दी नहीं किया जा सकता । इस लिये इस करमश्रन्थ का भी मद्दत्त्त बहुत अधिक है। यद्यीप इस कमप्रन्थ की मूल गाथाये বিজ चौतीस ही हैँ तथापि इतने में प्रचुर विषय का समावेश अन्थकार ने किया है। अत एच परिमाण में ग्रन्थ बडा न होने पर भी विषय में बहुत गंभीर तथा विचारणाय दे । इस अनुवाद के आरभ में एक प्रस्तावना दी हुई हे जिस में दूसरे करमग्रन्थ की रचना का उद्देश्य, विपय-चरान-शैल्ली, विपय-विभाग, 'कर्मेस्तव' नाम रखने का अभिप्राय त्यादि विपय, जिन फा सम्बन्ध दुसरे कर्मग्रन्थल है,डन पर थोडा,पर आवश्यक विचार किया गया है। पीछे गुणस्थान के सामान्य स्वरूपे सम्बन्ध में संक्षिप्त विचार प्रगट किये गये हैं। याद्‌ विप यसूची दी गई है, जिससे भ्रन्थके विषय,गाथा ओर पृष्ठ घार मालूम दो सकते दे । अनन्तर शुद्धिपत्न है । तत्पश्चात्‌ मल, छाया, ददी श्रथ तथा भावाथ सहित “कमेस्तवच ” नामक




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