मार्कण्डेय पुराण एक समीक्षात्मक अध्ययन | Maarkandeya Puran Ek Samiikshaatmak Addhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
213
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सूत जी का सभी पुराणो के वक्ता के रूप मे चित्रण तो मिलता है यहॉ तक कि उनके महत्व को
बताने क॑ लिये सूत जी की उत्पत्ति कैसे हुयी इसका भी वर्णन पुराणो मे किया गया है। यद्यपि इस
विषय मे कष्ठ मतभेद हे । भागवतपुराण के अनुसार -
` विलोमजोऽपि धन्योऽस्मि यन्मा पृच्छथ सन्तमा “^
मनुस्मृति के अनुसार -
“ क्षत्रियात् विप्रकन्याया सूतो भवति जातित |
वैश्यात् मागघवेदेहौ क्षत्रियात् सूत एव तु ।
त्रिय पुरुष एव बाह्मण कन्या से सूत की उत्पत्ति हुयी यह भी कहा जाता है कि राजा पृथु के
अग्निकुण्ड से उत्पन्न होने से सूत नाम से प्रसिद्ध हुये। सूत के पुत्र सूत 'उगश्नवा सौति' के
नाम से प्रसिद्ध हे।
सूत का कार्य --
पुराणो मे सूत के कार्यो का भी उल्लेख प्राप्त होता हे। वायुपुराण के अनुसार सूत का
कार्य वेदाध्ययन, धर्म का उपदेश जनता को देना, धर्म का प्रसार करना, पुराणो की कथा को
सुनाना, पठन-पाठन करना ही इनका कार्य था।
“ वशाना धारण कार्य श्रुताना च महात्मनाम् |
इतिहास पुराणेषु दृष्टा ये ब्रह्मवादिमि ।
माकण्डेय पुराण मे भी सूत जी को पुराण वक्ता के रूप मे दर्शाया गया है-
“कृष्णाजिनोत्तरीयेषु कुशेषु च ब्रसीषु च|
सूत च तेषा मध्यस्थ कथयान कथा शुमा | “4
1 भागवत ঘুহাতা 10/78/24
मनुस्मृति 10८11८17
वायु पुराण 1८32
माकण्डेय पुराण 6.26
> ০১ সি
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