ध्वन्य लोक | Dwanyalok
लेखक :
आचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्तशिरोमणिः - Acharya Visheshwar Siddhantshiromani:,
डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra
डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
42 MB
कुल पष्ठ :
510
श्रेणी :
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आचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्तशिरोमणिः - Acharya Visheshwar Siddhantshiromani:
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डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२५.
२६.
२७.
२८.
२६.
२०.
३१.
३२.
३३.
तेरह
श्र्थवक्त्युड्धुव अलद्भार ध्वनि [का० २५]
अ्रलद्भूगर ध्वनि की बहुविषयता [का० २६]
লজ के व्यद्भधच होने पर भी, वाच्य के व्यद्भथपरक होने पर
ध्वनि नहीं [का० २७]
इसका उदाहरण । वाच्य अलद्धार के व्यद्खयपर होने पर ही
ध्वनि व्यवह्वार के रूपक ध्वनि के २ उदाहरण । उपमा ध्वनि के
२ उदाहरण । श्राक्षेप ध्वनि का उदाहुरण। शब्दशक्तिमूल
श्र्थान्तरन्यास ध्वनि का उदाहरण । अ्रर्थशक्तिमूल प्र्थान्तरन्यास
ध्वनि का उदाहरण । दब्दशक्तिमल व्यतिरेक ध्वनि का
उदाहरण । उत्प्रेक्षा ध्वनि का उदाहरण । उत्प्रेक्षा वाचक शब्दो
के अभूद्वि मे भी उत्प्रेक्षा के समर्थक दो उदाहरण । भ्र्थशक्त्यु-
কুন ৪ ध्वनि का “उदाहरण ।
ध्वन्यद्धता से श्रलङ्कारों का चारत्वोत्कषे [का० २]
वस्तु से अलङ्कार श्यङ्खय होने पर ध्वनित्व [का० २९]
ग्रलङ्धार से সলভ ग्यद्खय होने पर ध्वनित्व [का० ২০]
ध्वन्याभास धा गुएीभूतव्यद्धचय [का० २९१]
ध्वन्याभास के दो उदाहरण । वाच्यार्थं के पून प्रतीयमान का
ग्रद्धे होने पर ध्वनित्व ही होता है इसका, उदाहरण ।
भ्रनिवक्षित बाच्य [लक्षएामूल] ध्वनि का [गुणीभूत व्यङ्कचयत्व]
प्राभासत्वे [का० २२]
कंवल व्यङ्य प्राधान्य ही ध्वनि का लक्षण [का० ३३]
तृतीय उद्योत
| प्ृू० २११--१४० ]
अ्विवक्षित वाच्य [२ भेद] और विवक्षित वाच्य के संलक्ष्यक्रम
व्यद्भरय [१५ भेद] की पदप्रकाशता तथा वाक्यप्रकाशावा कप
दो भेव [का १]
ग्रविवक्षित वाच्य के अत्यन्त तिरस्कृत वाच्य भेद की पद प्रका-
दाता के ३ उदाहरण | अ्रविवक्षित वाच्य के श्रर्थान्तर संक्रमित
वाच्य भेद की पद प्रकाशता के ₹उदाहरण। अविवक्षित के अत्यन्त-
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