ध्वन्य लोक | Dwanyalok

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Dwanyalok by आचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्तशिरोमणिः - Acharya Visheshwar Siddhantshiromani:डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२५. २६. २७. २८. २६. २०. ३१. ३२. ३३. तेरह श्र्थवक्‍त्युड्धुव अलद्भार ध्वनि [का० २५] अ्रलद्भूगर ध्वनि की बहुविषयता [का० २६] লজ के व्यद्भधच होने पर भी, वाच्य के व्यद्भथपरक होने पर ध्वनि नहीं [का० २७] इसका उदाहरण । वाच्य अलद्धार के व्यद्खयपर होने पर ही ध्वनि व्यवह्वार के रूपक ध्वनि के २ उदाहरण । उपमा ध्वनि के २ उदाहरण । श्राक्षेप ध्वनि का उदाहुरण। शब्दशक्तिमूल श्र्थान्तरन्यास ध्वनि का उदाहरण । अ्रर्थशक्तिमूल प्र्थान्तरन्यास ध्वनि का उदाहरण । दब्दशक्तिमल व्यतिरेक ध्वनि का उदाहरण । उत्प्रेक्षा ध्वनि का उदाहरण । उत्प्रेक्षा वाचक शब्दो के अभूद्वि मे भी उत्प्रेक्षा के समर्थक दो उदाहरण । भ्र्थशक्त्यु- কুন ৪ ध्वनि का “उदाहरण । ध्वन्यद्धता से श्रलङ्कारों का चारत्वोत्कषे [का० २] वस्तु से अलङ्कार श्यङ्खय होने पर ध्वनित्व [का० २९] ग्रलङ्धार से সলভ ग्यद्खय होने पर ध्वनित्व [का० ২০] ध्वन्याभास धा गुएीभूतव्यद्धचय [का० २९१] ध्वन्याभास के दो उदाहरण । वाच्यार्थं के पून प्रतीयमान का ग्रद्धे होने पर ध्वनित्व ही होता है इसका, उदाहरण । भ्रनिवक्षित बाच्य [लक्षएामूल] ध्वनि का [गुणीभूत व्यङ्कचयत्व] प्राभासत्वे [का० २२] कंवल व्यङ्य प्राधान्य ही ध्वनि का लक्षण [का० ३३] तृतीय उद्योत | प्ृू० २११--१४० ] अ्विवक्षित वाच्य [२ भेद] और विवक्षित वाच्य के संलक्ष्यक्रम व्यद्भरय [१५ भेद] की पदप्रकाशता तथा वाक्यप्रकाशावा कप दो भेव [का १] ग्रविवक्षित वाच्य के अत्यन्त तिरस्कृत वाच्य भेद की पद प्रका- दाता के ३ उदाहरण | अ्रविवक्षित वाच्य के श्रर्थान्तर संक्रमित वाच्य भेद की पद प्रकाशता के ₹उदाहरण। अविवक्षित के अत्यन्त- १६० १६१ १६१ २०४ २०४ २०५ २०६ २०६ २१० २१९१




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