महादेव गोविन्द रानडे | Mahadev Govind Rande

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Book Image : महादेव गोविन्द रानडे  - Mahadev Govind Rande

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ महादेव गोविन्द रानडे । अभिप्राय जान कर सब लोग आत्मश्लाघा का दोषी मुझे नहां समभेगे 1? इतनी पुस्तकों के अध्ययन से रानड के स्वास्थ्य पर अवश्य प्रसर पड़ा । उनकी आंखे सदा से कमजोर थी'। उन्न पर बेहद ज़ोर पड़ने से सन्‌ १८६४ ई० में बड़ी पीड़ा होगई जिसकी वजह से आँखें की तकलीफ जन्म भर बनी रही । जब बिलकुल आँखें बिगड़ जाने का भय हुआ ते डाक्र भाऊ दाजी से छः महीने इलाज कराया। इससे दद ते जाता रहा मगर एक श्रांख बहुत ही कमज़ोर होगई। ऐसे महान्‌ उद्योग और बुद्धिकौशल से इन्होंने विद्या सम्पादन की और थोड़े समय में यदि इनको “बम्बई-ग्रेजुएटों के शिरोमणि? का उपनाम मिल्ला तो उसमें कोई श्र्धये की बात नहीं है 1 सन्‌ १८६१-६२ ३० कौ एलपफिन्स्टन कालेज की वार्पिक रिपोर्ट में लिखा है कि “एक विद्यार्थी महादेव गोविन्द रानडे ने बी० ए० की परीक्षा बड़ी योग्यता से पास की है । अब वह इतिहास में आनसे के लिए अभ्यास कर रहा है |?” उसी साल्ल की डाइरेक्र-आझ्ाफ पबलिक इन्स्ट्रकशन की रिपोर्ट में लिखा है कि वह परीक्षा भी उन्होंने बड़े गारव से पास कर ली | यह ऊपर कहा जा चुका है कि कालेज की परीक्षाओं के लिए जब रानडे अभ्यास करते थे तो कुछ दिनों का एलफिन्स्टन' कालेज के जज्यूनियर फैले? थे और बाद मे “सीनियर पौलो हो गये थे। पेशवा सरकार ने एक रकृम संस्कृत के विद्वान पण्डितां का 'दक्िणाः की तरह देने के लिए अलग निकाल दी




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