दशलक्षण धर्म | Dashlakshan Dharm
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११
भरर विपुलचिचैरुतमा सा क्षमादो
रिषपथ रि सत्सदहायत्वमेति ॥ ८२॥
( पदह्मनन्दि पृष्ट-४२ )
मूलं--भज्ञानीजनों के द्वारा वध, बन्धन, कोध, हास्य भादि
किये जायें, तथापि साधु भ्रपने निमंल भ्ौर गम्भीर चित्त से विकृत
नहीं होते, वही उत्तमक्षभा है; रेषौ उत्तमक्षमा मोक्षमागं के पथिक
सन्तो को यथायंतया सहायता करने वाली है ।
उत्तमक्षमा किसके होती है !
उत्तमक्ष मादि जो दश धर्म हैं उतउमे सुख्यतया तो चारित्र
काटी प्राराधनदहै, भ्र्थातु उन दस्त धर्मों का पालन मुख्यतः सुनि-
दह्षा में ही होता है, श्रावक के गोणरूप से प्रपनी-प्रपनी भूमिका के
प्रनुतार अ्रंगत: होता है । मोक्षमा्ग ही दशंत-ज्ञान-चारित्र की
एकतारूप है, वह चारित्र दशा में ही होता है; सम्यग्हष्टि जीवों के
नियम से चारित्र प्रगट होना ही है, इससे चौथे.पाँचवें गुणस्थान में भी
उपचार से मोक्षमागं कहा है। उत्तमक्षमा भ्रर्थात् सम्यकदर्शनसहित
क्षमा | उत्त मक्षमा मिथ्यादृष्टि के नहीं होती ।
उत्तमपमा के अतिरिक्त अन्य चार क्षमाएं
क्षमा के पाँच प्रकार हैं, उनमें से चार तो पुण्यबन्ध के
कारणरूप हैं भोर पाँचवें क्षमा को 'उत्तमक्षमा' कहा जाता है, वह
धर्म है ।
(१) 'यदि में क्रोध करू गा तो मुझे हानि होगी, यदि में इस
समय सहन नहीं करूगा तो भविष्य में मुझे प्रधिक हानि होगी -
ऐसे भाव से क्षमा करे तो वह रागरूप क्षमा है। जिसप्रकार निबंल
मनुष्य बलवान का विरोध नहीं करता वेत्ते ही-'यदि में क्षमा करू
तो मुझे कोई हैरान नहीं करेगा-ऐसे भाव से क्षमा रखना सो बन्ध
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