साक्षात्कार | Sakshatkar

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Sakshatkar by अजना अनिल - Ajana Anil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बावजूद इसके एक दगामी ने दूसरे दगायी से कहा, यार ! भन्र बुछ फ्रश हुना जये । झापड-पट्टिया से मन उचट गया है। एक ने महा, यार | तुमता विचारक भी हो, देह मे कुछ नया धरटित हो रहा रो तो उतालो ?' दसरा दगायी बोला,-- हमारी लगायी भाग का ही परिणाम है कि प्यारे चारो ओर जिस्म खाये जा रह है. खून पिया जा रहा है । लेकिन इस सबके बावजूद एक मच्छी बात नि हमी लोग भाण भी उगसते जा रहे है । दोनो स्वय भी चमित थे । (१७)




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