कांग्रेस का इतिहास | Congress Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लखनऊ कांग्रेस ५ अपना सिर झुकायें, जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिए अपनी जान तक कुरबान कर दी है, तरह-तरह के कष्ट और अत्याचार सहे हें और जो आज भी अपनी मातृ- भूमि को प्यार करने के कारण कष्ट पा रहे है । उन लोगों की सेवाओं का भी हमें कृतज्ञता व सम्मान के साथ स्मरण करना चाहिए, जिन लोगो ने इस महान्‌ संस्था का बीज बोया और अपने निःस्वार्थ परिश्रम व बलिदान से इसका पोषण किया । भारत के कोने-कोने में, पूर्व-पश्चिम और उत्तर-दक्षिण, सभी दिशाओं में, इस दिन जो शानदार समारोह किया गया, उससे एक बार यह फिर साफ़ हो गया कि कांग्रेस सारे देश की--छोटे-बड़े, बालक-बूढ़े, स्त्री या पुरुष सबकी--हिन्दू, मुसल- मान, ईसाई, सिक्ख, पारसी ओर व्यापारी, व्यवसायी, वकील, डाक्टर, दूकानदार, किसान,मज़दूर आदि सभी श्रेणियों की प्रतिनिधि संस्था है और उसपर सबको विश्वास हैं । कुछ महाराष्टरीय युवकों ने तेजपाल संस्कृत पाठशाला में एक ज्योति जलाकर उसे अखण्ड रखने का निरवय किया । इसके अनुसार यह ज्योति जलाई गई ओौर काँग्रेस के अधिवेशनों के अवसर पर भी पहुँचाई गई । यहाँ यह बताना अप्रासांगिक न होगा कि सरकार ने इस राष्ट्रीय समारोह में साधारणतः किसी प्रकार की दस्तंदाज़ी नहीं की, फिर भी कुछ स्थानों पर स्थानीय : अधिकारियों ने रुकावट डाली । राष्ट्रपति का दोरा बम्बई की काँग्रेस १९३४ के अक्तूबर में हुई थी । उसका अगला अधिवेशन लखनऊ में अप्रेल १९३६ में हुआ । राष्ट्रपति राजन्द्रप्रसाद का कार्यकाल इस तरह १॥ साल तक रहा । इन १८ महीनों में राजेन्द्र बाबू ने बहुत अस्वस्थ होते हुए भी जिस उत्साह, जिस लगन और कतंव्यपालन की जिस भावना के साथ काम किया, वह काँग्रेस के इस समय तक के इतिहास में अद्वितीय ह । बिहार में भूकम्प-पीडितों की सहायता का जो बड़ा भारी काम चल रहा था, उसका भार भी उन्हींके कन्धों पर था। इतनी बड़ी ओर कठिन जिम्मेदारी होते हुए उन्होंने राष्ट्रपति के नाते महा- राष्ट्र, कर्नाटक, बरार, पंजाब, तामिलनाड, आँध्य, केरल और महाकोशल आदि प्रांतों का दौरा किया । राष्ट्रपति का दौरा अप्रेल १९३५ से शुरू हुआ और फरवरी १९३६ मे ज[कर समाप्त हुआ । चौमासे में उनका दौरा स्थगित रहा । इस दौरे में उनका सभी जगह शानदार स्वागत हुआ । काँग्रेस कमेटियीं के अलावा म्यूनिसिपैलिटियों, लोकल बो, पंचायतों, व्यापारिक संस्थाओं ओर दूसरी सावेजनिक संस्थाओं ने उन्हें मानपत्र दिये । अक्सर सभी स्थानो म उन्हे थेलियां भी भेट की गई । कुल मिला- कर सव प्रान्तो में उन्हें ८९२९७ ९०१० आ० ५ पाई मिला । इसमें से महाराष्ट्र,




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