गुणस्थानदर्पण | Gundasthanadarpand

Gundasthanadarpand by मनोहर जी वर्णी - Manohar Ji Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गुणस्थानदपण ( ६ ) इस तरह २८ मोह ग्रकृतियोंकी प्रथमसत्तावाला मिथ्या दृष्टि कहलाता है । अब यह सदि मिथ्यादृष्टि जीव हो गया | २७ की सत्तावाले मिथ्यादष्टि--२८ की संत्तावा न मिथ्यारृष्टिको जब मिथ्यात्वमें कुछ अधिक काल व्यतीत होजाता है तत्र॒ सम्यकप्रकृतिकी उद्र लना (बदलना) हो कर॒ वह सम्यम्मिथ्यातप्रकृतिसूप होजाती है, पश्चात्‌ सम्यम्मिध्यात्वकी उद्व लना होकर बह मिथ्यात्वरूप हो जाती है जब सम्यकप्रकृतिको उद्र लना होचुकती है ओर सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्ग लना न हो पावे तब वहां बह २७ मोहमीयग्रकृतिकी सत्ता बालां मिथ्यादृष्टि कहलाता हे । यह भी सादि मिथ्यादृष्टि है । २६ मोहप्रकृतिकी सत्तावाला सादि मिथ्यादृष्टि-- जब सम्यग्मिथ्यात्वकी भी उद्ग लना होकर वह मिथ्यात्व- प्रकृतिर्ष हो जाती है तब अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ व मिथ्यात्वप्र कृति तथा चारित्र मोहनीयकी शेष २१ प्रकृतियां इस प्रकार २६ की सचावाला यह मिथ्पादष्टि है। इसे उद्व लित मिथ्यादृष्टि भी कहते हैं। २४ की सत्ता बाला मिध्यादष्टि--जिस मिथ्यादष्टि ने श्रनन्तानुबन्धी कषायकी विसंयोजना ( अग्रत्याख्यं ना- वरण सूप हो जाना ) करके उपशम सम्यक्त्व प्राप्त किया




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