हम सुखी कैसे रहे | Hum Sukhi Kaise Rahe

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Hum Sukhi Kaise Rahe by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रापने उनसे लल्लु की नौकरी के लिए कहा उस समय कोई स्थान खाली न हो । अथवा उनके दफ्तर मे ऊपर से छंटनी करने का हुक्म आ गया हो, या और किसी बडे श्रफसर या मिनिस्टर की सिफारिश किसी व्यक्ति को रखने के लिए पहुँच रही हो । इसके अलावा यह भी हो सकता है कि वे स्वय ही एक श्रादशेवादी व्यक्ति हौ, भाई-भतीजावाद को नापसन्द करते हो, श्रादि । इसी तरह और भी अनेक छोटे-मोटे काम और बातें हो सकती है, जो आपकी आशा के अनुरूप आपके परि- जनो से हल न हो सके । तब आपको न तो निराश होना चाहिए और न उनके प्रति श्रपने मन मे मैल ही लाना चाहिए क्योकि निराश होने से स्वय आपको कष्ट होगा , दूसरो के प्रति मन मैला करने सेजीवनमे ही मंलापन श्राने लगता है और यही छोटी-छोटी बाते जीवन मे असन्‍्तोष भरती हैँ, जीवन को देखने वाले चरमे को दूषित करती ह । फिर हम जीवन की एक गलत परिभापा वनाने लगते है जीवन दुखो की एक गठरी है'। प्राय एक और नारा समाज मे बडी बुलन्दी के साथ लगाया जाता है--अपने सगे-सम्बन्धी कभी काम नही श्राते , ग॑ रो से फिर भी काम निकल श्राता है यदि निष्पक्ष भाव से विश्लेषण किया जाए तो यह नारा गलत आर बेमानी है। ऐसी धारणा बना लेने वाले लोग भी वही मौलिक भूल करते हैं ; अर्थात्‌ वे अपने सगे-सम्ब- घियो से जरूरत-से-ज्यादा आशा शौर अपेक्षा करते हैं , १६




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