अपभ्रंश दर्पण | Apbhransh Drpan

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Apbhransh Drpan by जगन्नाथ शर्मा - Jagannath Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ] ^. ~~~ -----~-~----~- ~~ ---------- ~~ ~---~-~----- ~~~ ~-“~--~ ~~~ नागर, उपनागर ओर त्राचड्‌ ये तीन भेदं बतलाये ह । अतः प्रान्त-भेद से अपभ्र श के बोलचाल कै स्वरूप के कद भेदों को स्वीकार करना ही पड़ता है । किन्तु साहित्यिक स्वरूप उसका प्रधानतया केवल एक ही था। भौर वह स्वरूप नागर अपन्न श है जिसका ज।धार शौरसेनी प्राकृत हेमचन्द्र के श्नुसार मानी जा सकती है । सारय में उसकी प्रधानता थी । हेमचन्द्र ने उसी शोरसेनी या नागर श्चपभ्च श का व्याकरण लिखा है । श्रीयुत डाक्टर सुनीति कुमार चटर्जी के अनुसार शौरसेनी अपअ श ही बहुत समय तक उत्तर भारत की राष्ट्रभाषा एवं साहित्यिक भाषा थी। वे कहते है:--“1)७ 9869) ০৮ 98019601 4 00078168 060870८ ठप्राकण को ০৮৪1 4780 [0918 1071 50151480100 99691) 6011) 10 13908651) 9:0)9৮17 4৪ 15100804, 05009) 900. 09:6910]7 28 & 70110 18108 78890, 88 & 9016 8066९} চম1)101) 81006 ४8 766४7060 28 5112016 10৮ [০9৮ 01811 80718 09४6], 0. 0. ए. 1, 1४४०. 2. 161, श्रीयुत मोदी का भी यही कथन है। वे कहते हैं:-- साहित्यमाषापदमारूढेकापभ्र शभाषा दक्षिणापथवर्त्तिमान्यखेट- निवासिना मद्दाकविपुष्पदन्तेन, कामरूपबसतिना महासिद्धसरोय- हेश, बंगदेश बास्तठ्येन कृष्णुपादेन विविधदेशनिवासिभिश्चैष- सनेफे: कविभिः संस्कृतप्राकृतवत्‌ प्रयुज्यमानेकस्मिन्‌ समये समस्ते




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