अपभ्रंश दर्पण | Apbhransh Drpan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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नागर, उपनागर ओर त्राचड् ये तीन भेदं बतलाये ह । अतः
प्रान्त-भेद से अपभ्र श के बोलचाल कै स्वरूप के कद भेदों को
स्वीकार करना ही पड़ता है । किन्तु साहित्यिक स्वरूप उसका
प्रधानतया केवल एक ही था। भौर वह स्वरूप नागर अपन्न श
है जिसका ज।धार शौरसेनी प्राकृत हेमचन्द्र के श्नुसार मानी
जा सकती है । सारय में उसकी प्रधानता थी । हेमचन्द्र ने
उसी शोरसेनी या नागर श्चपभ्च श का व्याकरण लिखा है ।
श्रीयुत डाक्टर सुनीति कुमार चटर्जी के अनुसार शौरसेनी
अपअ श ही बहुत समय तक उत्तर भारत की राष्ट्रभाषा एवं
साहित्यिक भाषा थी। वे कहते है:--“1)७ 9869) ০৮
98019601 4 00078168 060870८ ठप्राकण को ০৮৪1
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81006 ४8 766४7060 28 5112016 10৮ [০9৮ 01811
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09४6], 0. 0. ए. 1, 1४४०. 2. 161,
श्रीयुत मोदी का भी यही कथन है। वे कहते हैं:--
साहित्यमाषापदमारूढेकापभ्र शभाषा दक्षिणापथवर्त्तिमान्यखेट-
निवासिना मद्दाकविपुष्पदन्तेन, कामरूपबसतिना महासिद्धसरोय-
हेश, बंगदेश बास्तठ्येन कृष्णुपादेन विविधदेशनिवासिभिश्चैष-
सनेफे: कविभिः संस्कृतप्राकृतवत् प्रयुज्यमानेकस्मिन् समये समस्ते
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