हरि मन्दिर | Hari Mandir
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
234
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हरिमन्दिर | १७॥
जायेंगे । कोई भूनने तक का कष्ट भी नही उठायेगा। इन मुगलों की तलवारों
को जम लग गया है। ये नादिर का कुछ नही विग्राड सकेंगे । शराब ने इनकी
तलवारों को तडागी पहना दी है। यह काम पसिंहो के पल्ले ही पडा हुआ है।
भला कोई पूछे, भई, हमे क्या लेना है परायी आग में जल कर £ हमारे खून के
'प्यामे तो ये भी हैं, वे भी | दोतों को लड़कर हल्के हो लेने दो । वह जरा दिल्ली
को लूट ले | दो-एक डोले निकाल ले । दवी हुई दौलत उखाड ली जाये | इनकी
नाक से तो टप-टप विच्छ गिरते हैं। जरा नाक साफ हो जाये, फिर सिंह
सीचेंगे ) इस बार पजाब नादिर से नही भिडेगा। हम तो नादिर की कमर तक
नही देखेगे, जव वह जा रहा होगा । जय वह् दौलत से भरी गाड, अशरफियो
से लदे ऊठ और घोड़े, गहनो की गठरिया लिये पजाव से गुजरेगा तो हम उसके
साझीदार बनेंगे । मीठा झूठ के बहाने खाया जाता है। हन तो भार ही हल्का
कर सकते हैं | हमे जरूरत ही क्या है जम के सामान की ? घोड़े, तोपें, दौलत--
नादिर उन सबका करेगा भी क्या ? बेकार का भार! सफर में कम भार हो
वेहतर रहता है । उसका सफर तो बेहद लम्बा होगा। हमारा मेहमान है। सेवा
करना हमारा फर्ज है। यह गृुर्मत लक्खी जयल में स्वीकार किया जाना है।
लक्खी जगल के सूरमा ही शोधंगे नादिरशाह को। इन ससुरे लुटेरों ने पजाव
को जरनेली सड़क वना रखा है। जब तक इनकी नाक में नुकेल नहीं पड़ती,
तव त्तक ये मानने वाले नही है। और अभी तो नादिर सिर्फ खासा ही है। भभकी
सुतने दो जकरिया खां को--मां की गोद भें जा छिपेगा ! लाहौर पर उसकी
कौन-सी इंट लगी हुई है! ससुराल चला जायेगा। पर सिह कहा चले जाये ?
यह् हमारी जन्मभूमि है । मा-वाप का धर छोड कर हमे कहा जाना है ?'
बिजला दिह ने टोका, “गंगा जल की तरह पवित्र है लक्खी जगल । खने-
पीने के लिए बाघ-विलाव और काम के लिए रीछ ! इस तरह को बातें परदे के
पीछे की जाती हैँ । विद्वान कहते है कि दीवारों के भी कान होते हैं।
हों में कोई चुगलखोर नही पंदा हो सकता । मैं दावे के साथ कहता हूं
कि सारे पजाव में चुगली खाने वाला एक भी आदमी नही है। सारे पजाव को
इनसे हमदर्दी है। सारा पंजाब दुखी है। उन्होने सारे पंजाव की इज्जत को सप
म॑ डाल কাত ভালা ই । पंजाव के सारे लोग सिक्ख हैं--चाहे कोई टि
या मुसलमान...” पारा सिह एक क्षण को रुक गया। फिर बोला, 'खालसा एक-
दम तैयार है। विहों को कौन-से घोडे तैयार करने हैं! भूरे को कधे पर डाला
और तैयार 1...
मनसा सिंह ने अपनी दाढी पर हाथ फिराया। जरा ठहरो, जल्दबाजी
को ज़रूरत नहो है । ज़करिया यां की लौ मद्धिम पड़ने दो | उसका दिमाग ठिकाने
आ जाये। टटिहरी की तरह आसमान को सिर पर उठाये फिरता है। सिंह त्तो
'इसे चीटियो की तरह लगते हैं। अमृतसर खाली करवाना है [--तुम करवा के
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