महावीर जयन्ती स्मारिका | Mahaveer Jayanti Smarika
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
430
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ग्रध्यक्षीय
সার वैज्ञानिक भौतिकवाद की होडा-होड़ चल रही है। विज्ञान ने मनुष्य से ईश्वर का
काल्पनिक आधार छीन लिया है। परमाणु का भ्रविष्कार कर विज्ञान ने मानव को श्रसीम शक्ति
प्रदान की है। वही उसने सुख और णान्ति भी छीन ली है। सभी नैतिक मूल्य चरमराकर गिर पड़े
हैं। वैज्ञानिक श्रनुसंघानो से मानवता के लिये विनश का खतरा उत्पन्न हो गया है। विज्ञान ने
परमाणु बम का श्राविष्कार कर मानवता को विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। दो
महा युद्ध श्रौर प्रमी के खाड़ी युद्ध ने विज्ञान की विभीषिका के दर्शन करा दिये हैं। विज्ञान ने दावा
किया था कि वह सृष्टि के रहस्यों का उद्घाटन करके रहेगा किन्तु इस क्षेत्र में विज्ञान के दावे भूठे
प्रतीत हो रहे हैं ।
ग्राधुनिक युग की विडम्वना ने मानवता के समक्ष एक विकट प्रष्न उपस्थित किया है कि
प्राखिर रास्ता क्या है, उपाय क्या है ? चूंकि विज्ञान मानवता को सुख और शान्ति दिलाने में
प्रसफल रहा है. इसलिये धर्म से ही श्राशा की जा सकती है । लेकिन इस युग में वही धर्म दर्शन
उपादेय हो सकता है जो एक श्रौर दृष्टिकोण में वज्ञानिक हो और दूसरी ओर वह आध्यात्मिकता
द्वारा विज्ञान की बुराइयों श्रौर दुष्परिणामों को दूर करने की क्षमता रखता है ।
जन धर्म /दर्गन की यह विशेषता है कि उदारवादी हष्टिकोण रखता है । वह ऋषभदेवादि
महान् तीर्थंकरों की साधना परम्परा है । इसमे रूढिवादिता, सक्रीणता, साम्प्रदायिकता, जातिवाद
पग्रादि मानवता फो बाटने वाली दीवारों का वस्तुत: कोई स्थान नही है। यह तो जीव मान्न का
कल्याण करने वाली संस्कृति है । इसके समता मूलक चिन्तन का, साधना का जन-जन में गहरा
प्रचार हो प्लौर मानव की चित्त शुद्धि हो इस हेतु दस लक्षण पर्व के पावन दिनों मे, महावीर
निर्वाणोत्मिव, प्रथम तीबकर ऋपषमभदेव और सम्राट मरत की जयन्ती श्रादि प्रवस्तरो पर सभा द्वारा
वियार गोपष्ठियों एवं प्रन््य कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। समा झपने विविध कार्यक्रमों द्वारा
समाज में विभिन्न क्षेत्रों में वेचारिक्री क्रान्ति उत्पन्न करने का प्रयास करती है प्रौर समाज मे व्याप्त
कुरीनियो के निराररण हेतु समाज को अग्रसर करती है ।
साहित्य समाज का प्रतिविम्य होता है। सामाजिक सम्प्रेपण का कार्य साहित्य सहन रूप
1 परता है। ध्रत्येग़ काल वा साहित्य उस समय का दर्पंश होता है । जैन साहित्य भारतीय साहिस्य
হট #
गर
५
(পিটার
महावीर जयन्ती स्मारिका 1991
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