भारतीय साधना और संत तुलसी | Bhartiya Sadhna Aur Sant Tulsi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तुलसी साहब का जीवन चरित्र ই (२) हिन्दी के छेखक--संत तुलसी के जीवन-चरित्र पर विचार करने वाले हिन्दी भाषा के मुख्य विद्वान स्वर्गीय ड० पीताम्बरदत्त बड़यूवार, पंडित परशुराम चतुर्वेदी और डा० रामकुमार वर्मा हैं। डा० पीताम्बरदत्त बड़थूवाल ने अपने ग्रन्थ हिन्दी काव्य में निर्मूण सम्प्रदाय' में तुलसी साहब के संक्षिप्त जीवन-चरित्र की चर्चा की है।' इसके अनुसार संत तुलसी पेशवा रधुनाथ राव के ग्यष्ठ पूवर एवं वाजीरावे द्वितीय कै ज्येष्ठ भ्राता थे ।* इन्होंने राज्य त्याग कर संत-मार्ग ग्रहण किया और हाथरस को अपना निवास स्थान बनाया ।' इनका वास्तविक सलाम इ्यामराव था और बिदूर में एक बार इनकी भेंट बाजीराव द्वितीय से हुई थी ।* पंडित परशुराम जी चतुर्वेदी हिन्दी के प्रथम विद्वान हैं जिन्होंने तुलसी साहव के जीवन-चरित्र को कुछ विस्तुत रूप देने का प्रयत्न क्रिया है ! * पर उसके द्वारा उत्तरी भारत की संत परम्परा' में प्रस्तुत तुलसी साहब की जीवनी परम्परागत तथ्यों पर ही आधारित हैं। यह क्षितिमोहन सेन एवं डा० वड़ेथवाल द्वारा प्रस्तावित जीवन-चरित्र से अधिक भिन्न भी नहीं है । वस्तुतः इन विद्वानों के तथ्य समान हैं ; परशुराम जी चतुर्वेदी की विशेषता यह है कि उन्होंने इन तथ्‌यों पर प्रथम बार ऐतिहासिक दृष्टि से विचार करने की चेष्टा कौ है । पर यह प्रयत्न महत्वपूर्ण नहीं कहा जा सकता और इसके द्वारा प्राप्त निष्कप॑ भी अपूर्ण एवं असम्बद्ध हैं। 'उत्तरी भारत की संत परस्परा' के अनुसार तुलसी साहब जाति से ब्राह्मण थे; पूना के राजा के ज्येष्ठ पुत्र थे मौर इनकी पत्नी का नाम लक्ष्मी वाई था । पिहासनारोहण के समय इन्होंने गृह त्याग क्रिया भौर बयालीस वपं के उपरान्त अपने भनूज वाजीराव द्वितीय से इनकी भेट विद्र भे हई । ° चतुवेदी जी ने संत तुरौ कौ. जीवन-व्ी, स्वभाव इत्यादि - पर भी प्रकाश डालने का प्रयल किया है! भाचायं क्षितिमोहन सेन का अनुमोदन करते हुए इनका जन्मकारू सन्‌ १७६० एवं देहावसान काल सन्‌ १८४२ माना है । १--हिन्दी काव्य सें नियुण सम्प्रदाय, पृ० ८९ ।. २--हिन्दी काव्य में निमुण सम्प्रदाय, पृ० ८९ । ३--हिनदौ काव्य भ निगुण सम्प्रदाय, पृ० ८९॥ ४--हिन्दी काव्य में निगुंण অন্সহাধ, তু ভৎ। भ--उत्तरौ भारत की संत परम्परा, पृ० ६४३--६५० | ६--उत्तरी भारत की संत मरम्परा, पृ० ६४४ । ७--उत्तरी भारत की संत्त परम्परा, पु० ६४४---६४५ | ५--उत्तरी भारत को संत परम्परा, पृ० ६५०1




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