पपौरा | Papoura
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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बनारसी दास चतुर्वेदी - Banarasi Das Chaturvedi
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राजकुमार जैन - Rajkumar Jain
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पपरा क्षेत्र
( क्या है और क्या बन सकता है )
खा फाल था | पपौरा के निकट का रमन्ना ( रक्षिपत
भरण्य ) दमारे यहां से चार मील दूर दै। दम तीन आदमी-
श्रीयुत यशपाल जैन बी० ए० एल'एल० बी०, पं० राजकुमारजी
स्राहित्याचायं श्रोर में--कुण्डेश्वर से उक्त बन की ओर रवाना
हुए और प्रातःकाल की शीतल मन्द समीर का आनन्द लेते हुए
ढेदु घण्टे में वन के निकट जा पहुँचे । इस बन का क्षेत्रफल आठ
बगे मोल है और कदी-कदीं पर यह् काफी घना हो गया हैं।
स्रणं-ग ( चौतल ), सांभर, जंगली सुअर ओर तेंदुआ इस
जगल में पाये जाते है। चुकि इस वन में शिकार खेलन की
मनाई है, इसलिये ये वन्थपशु बहां खाधीनता-पृवक विचरण
करते रहते हैँ। उस दिन भी हमें झाठ-नो बीतल ओर पांच
सांभर दोख पड़े। उंदुआ देखने की लालसा “मन की मन के
নাহি ব্ধী।?
हम लोग वन-अमण का भानन्द ले रहे थे भर शिक्षा
तथा संकृति सम्बन्धी वार्तालाप करते जाते थे एक जग
आंवले ओर ढाक के वृत्त साथ ही साथ दीख पढ़े | हमारे एक
मित्र ने, जो वैध हैं ओर साहित्य-प्रेमी भी, कहा था कि कायाकल्प
के लिये ऐसा स्थान उपयुक्त माना जाता है, जहां ढाक तथा
आंवले के वृक्ष आस-पास उगे हुए हों झोर उन्हीं के निकट कुटी
बनाई जाती है। इमने कहा तब तो इस बन में बीसियों व्यक्तियों
का कायाकल्प हो सकता है । वस्तुतः वनों का लीवन ही काया-
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