पपौरा | Papoura

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Papoura  by बनारसी दास चतुर्वेदी - Banarasi Das Chaturvediराजकुमार जैन - Rajkumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पपरा क्षेत्र ( क्या है और क्या बन सकता है ) खा फाल था | पपौरा के निकट का रमन्ना ( रक्षिपत भरण्य ) दमारे यहां से चार मील दूर दै। दम तीन आदमी- श्रीयुत यशपाल जैन बी० ए० एल'एल० बी०, पं० राजकुमारजी स्राहित्याचायं श्रोर में--कुण्डेश्वर से उक्त बन की ओर रवाना हुए और प्रातःकाल की शीतल मन्द समीर का आनन्द लेते हुए ढेदु घण्टे में वन के निकट जा पहुँचे । इस बन का क्षेत्रफल आठ बगे मोल है और कदी-कदीं पर यह्‌ काफी घना हो गया हैं। स्रणं-ग ( चौतल ), सांभर, जंगली सुअर ओर तेंदुआ इस जगल में पाये जाते है। चुकि इस वन में शिकार खेलन की मनाई है, इसलिये ये वन्थपशु बहां खाधीनता-पृवक विचरण करते रहते हैँ। उस दिन भी हमें झाठ-नो बीतल ओर पांच सांभर दोख पड़े। उंदुआ देखने की लालसा “मन की मन के নাহি ব্ধী।? हम लोग वन-अमण का भानन्द ले रहे थे भर शिक्षा तथा संकृति सम्बन्धी वार्तालाप करते जाते थे एक जग आंवले ओर ढाक के वृत्त साथ ही साथ दीख पढ़े | हमारे एक मित्र ने, जो वैध हैं ओर साहित्य-प्रेमी भी, कहा था कि कायाकल्प के लिये ऐसा स्थान उपयुक्त माना जाता है, जहां ढाक तथा आंवले के वृक्ष आस-पास उगे हुए हों झोर उन्हीं के निकट कुटी बनाई जाती है। इमने कहा तब तो इस बन में बीसियों व्यक्तियों का कायाकल्प हो सकता है । वस्तुतः वनों का लीवन ही काया-




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