अनेकान्त | Anekant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
386
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)>मड़, श्रुवकीर्ति ओर: उत्तक्ी-ज चत्राएँ..
2১১৯ ~ রা (५. 1 ६ > ( परमानन्द यसी
भट्टारकि श्रतकीति नंरोसंब बलात्कोरेगण और सरस्वती
गच्छुके विद्वान थे । यह. मं देवेस्ट्रकीधिक प्रशिष्य और
विभुकनकीतिके सिष्य হী प्रभ्धकर्तीने म० दैवेरंदकीतिको
झिकुभाषी' और अपने गुंरु ग्रिशुवनेकीलिकों अरेत्ाश।हप
सह गु्णीकि 'घोरिक 'बतैलायों हैं ।'अर्तकोर्मिनि ' अपनी
व्यक्त करते हुए अपनेकों अ्रेल्पशुद्धि” बतेलायिः है। इनक
डिप्रशटध! रचैभाओ्रोंके अवलोकन *करनेसे शैर्त'' होता है तक
बाप अपक्ष श्माषाके विद्वान थे +' आपकी उपलर्धध सभी
एवन अपर श' भोषाके पदेंडियों छुन्दर्में ही रची भाई हैं|
इसे खर्मय तेक आपकी चार कैँतियाँ उपलब्ध ही चुंकी हैं |
जिनमें घैसंपरोचाकें 'आदि প্রীত বক ` दै पत्रं सिदत
है ३८/ पत्र साल उपलब्धारं | “और परलेप्डप्रकाशसारके
१ -ऋाक्कि ओोन््तोम' पत्र/शह्ीं हैं ।'आषक्ती' धारों ऊलिंयोकिं
हराम... इन গাব) ১, চক ৬৮ হয লে $
২. অনুবুরীতদ ১8 ফেজ
विष
और 5 मोगसार+-ये रारो हों इतिय उम्होेः
হা कै राजा गयासुद्दौन और গা বড
सम्बत् १५१२-४३ में बना कर समाप्त को थीं |
आपको सुबसे पहली कृति 'हरिवंशपुराणु? हे . जिसमें
४७ संधियों द्वारा जनियोंके २३वें त्रीथंधर भ,* नेमिनायक्रे
जीवनपरिचयकी, अ्रंक्ित. किया गया हे | बसंग्रतरश उससे
श्रीकृष्ण आदि यदुवंशियोंका संक्षिप्त चरित्र भो दिया
हुआ है। इस अन्थ॒की, दो प्रतियोँ, अब तक : उपलब्ध
हुईं हैं । एक प्रति आरा, जन सिद्धान्त भवनृमें है और दूसरी
आमेरके महेन्द्रकीतिकु-भण्डारमें मौजूद है, छुं। संचत्, १६
०७ की लिखी ड है. इनङो कििप्रशस्तिःमो पपन श
লামামি लिम्बी गहे हे । श्चारा्की वह प्रति म० * १९२३ . की
लिखी हुई है, जा मंडपाचलदुर्गके सुलतान ग्थासुदीनके
रॉन्पैकालमें दमोवादेशर् जोरहट नगरके मह|खान और
भीजवानके समय लिग्बी गई दै; ये मद/खान भोजखान
जेरहंटनर्गरके सूबेरार जान॑ पड़ते हे बतमानमें जेरहूटनामका,
চি ধা মহ अन्तर्गत है, यह दूह पहल वि ध
चुका हे । सम्भव है यद्द दमोह उस समय मालव-रा
शुिल हो । -्रौर यड त्नी्डो-- वकताः ह ` ক্ষিং মারলযাত ৮
রীনা, কাই १नेर्दर লামা न जी अमो तद 5 पो पति अनिर मंडार ठपलस्ध हुई
बना कम द्वो जान पढ़ती हैः
दमोवादेश' स्पष्ट रूपसे उल्लिखित हे ।
কমা , 5
হত হাক কে
রা 4
४ ८ म
काफी | ‰
४५ ९ (न्नर १४ । त
इंतिहायले ६५६ है ङि নু 11 2০;
अप क्राफ 5
1 को डससे,पृत्र..
डाला था, और, मान् ङ, ব্রন ৪:৬০ ডা
सतयं राजा बन बढ़ा थां।, उसकी কখন श हु খ্
इसके টে करो ख़त मजबूत মনা कर् ड्से गपु না
राजधानी बनाई थी. उसीझे, बुंशपें शाह शयायुद्दीन हुओ,
निल मुक्ते मानवक सय 8 19815 › ४६
111) 11.14
ए ना मा বা शकते कृष्न
১০০১১121218 -
४ 88
न स्तन्न सुम्न किव নয ২ कषः
संवत् विक्कम টি सह।
णण्रजेरहटजिणुहरु चंएड़ ६, (क ।
गंधसउर्णु तत्त्यइदुुजाय ३, चड वेद ंधर्सछुणिश्रणु रायड
माघकिस्ट्टपंचमिंससिवाएं इः য় যব ।
गंथु सउण्णुजोउसुपंवित्तउ, कम्मक्शुउशिमित्त ज॑ उत्तद ।
दूसरी रचना 'घमंपरीक्षा है । इंसकी पुकमान्न अपूर्ण
प्रति डा० द्वीरालाल जो ऐम० ए० नागपूरके पास है।
जिसका परिचय उन्होंने अनेकान्त ब्रषं ११ किरण २ में
विया हे । जिसते स्पष्ट है कि उक्र धर्मपरी काते १७२ कडवक
हैं। दरिषेणको धमंपरीकाओं सम्बन्धमें डा० ए० एन० उपाध्ये
एुस० ए० कोल्हापुर॑ने (पः 11.11.21...
प्छ, 8) 2 एप) क्िसक परिचय उक्र
शीषंक लेखमें दिया है जो द्धः १8७२. पन भारुडारकर
रिसचदृन्स्टीट्यूट कः कषिकतर जुबली हूं? के एनाल्समें
प्रकाशित हुआ है । थ्रोह् जिसका -अचुवाद ;,झुनेकान्तके ८वे
वर्षकी प्रथम किरि हो, चु, है | उसमें इस
“धमंपराक्षा? का कोड़े, उज़्ज्लेख़ नहीं 8.1 तुलेंकि वह उन
समय तक प्रकाशुमें; नहीं खाई; ।).. *৩.5
इम भन्थको [रि विते संबह $४९:२ कं बनाया हे ।
क्योंकि इसके 7 चेजज्मनेका টি हृति. इने दूमरे मन्ध
परमेष्ठिप्रकाशसार में ,वि 1 धर ७६०
सीस रुना परमेष्टिककाशला ह. इस भन्थकी
*0800511482 91১01: 7156015 ०0 {1612.2. 309
User Reviews
No Reviews | Add Yours...