अनेकान्त | Anekant

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Anekant  by किशोर मुख्तार - Kishor Mukhtar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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>मड़, श्रुवकीर्ति ओर: उत्तक्ी-ज चत्राएँ.. 2১১৯ ~ রা (५. 1 ६ > ( परमानन्द यसी भट्टारकि श्रतकीति नंरोसंब बलात्कोरेगण और सरस्वती गच्छुके विद्वान थे । यह. मं देवेस्ट्रकीधिक प्रशिष्य और विभुकनकीतिके सिष्य হী प्रभ्धकर्तीने म० दैवेरंदकीतिको झिकुभाषी' और अपने गुंरु ग्रिशुवनेकीलिकों अरेत्ाश।हप सह गु्णीकि 'घोरिक 'बतैलायों हैं ।'अर्तकोर्मिनि ' अपनी व्यक्त करते हुए अपनेकों अ्रेल्पशुद्धि” बतेलायिः है। इनक डिप्रशटध! रचैभाओ्रोंके अवलोकन *करनेसे शैर्त'' होता है तक बाप अपक्ष श्माषाके विद्वान थे +' आपकी उपलर्धध सभी एवन अपर श' भोषाके पदेंडियों छुन्दर्में ही रची भाई हैं| इसे खर्मय तेक आपकी चार कैँतियाँ उपलब्ध ही चुंकी हैं | जिनमें घैसंपरोचाकें 'आदि প্রীত বক ` दै पत्रं सिदत है ३८/ पत्र साल उपलब्धारं | “और परलेप्डप्रकाशसारके १ -ऋाक्कि ओोन्‍्तोम' पत्र/शह्ीं हैं ।'आषक्ती' धारों ऊलिंयोकिं हराम... इन গাব) ১, চক ৬৮ হয লে $ ২. অনুবুরীতদ ১8 ফেজ विष और 5 मोगसार+-ये रारो हों इतिय उम्होेः হা कै राजा गयासुद्दौन और গা বড सम्बत्‌ १५१२-४३ में बना कर समाप्त को थीं | आपको सुबसे पहली कृति 'हरिवंशपुराणु? हे . जिसमें ४७ संधियों द्वारा जनियोंके २३वें त्रीथंधर भ,* नेमिनायक्रे जीवनपरिचयकी, अ्रंक्ित. किया गया हे | बसंग्रतरश उससे श्रीकृष्ण आदि यदुवंशियोंका संक्षिप्त चरित्र भो दिया हुआ है। इस अन्थ॒की, दो प्रतियोँ, अब तक : उपलब्ध हुईं हैं । एक प्रति आरा, जन सिद्धान्त भवनृमें है और दूसरी आमेरके महेन्द्रकीतिकु-भण्डारमें मौजूद है, छुं। संचत्‌, १६ ०७ की लिखी ड है. इनङो कििप्रशस्तिःमो पपन श লামামি लिम्बी गहे हे । श्चारा्की वह प्रति म० * १९२३ . की लिखी हुई है, जा मंडपाचलदुर्गके सुलतान ग्थासुदीनके रॉन्पैकालमें दमोवादेशर् जोरहट नगरके मह|खान और भीजवानके समय लिग्बी गई दै; ये मद/खान भोजखान जेरहंटनर्गरके सूबेरार जान॑ पड़ते हे बतमानमें जेरहूटनामका, চি ধা মহ अन्तर्गत है, यह दूह पहल वि ध चुका हे । सम्भव है यद्द दमोह उस समय मालव-रा शुिल हो । -्रौर यड त्नी्डो-- वकताः ह ` ক্ষিং মারলযাত ৮ রীনা, কাই १नेर्दर লামা न जी अमो तद 5 पो पति अनिर मंडार ठपलस्ध हुई बना कम द्वो जान पढ़ती हैः दमोवादेश' स्पष्ट रूपसे उल्लिखित हे । কমা , 5 হত হাক কে রা 4 ४ ८ म काफी | ‰ ४५ ९ (न्नर १४ । त इंतिहायले ६५६ है ङि নু 11 2০; अप क्राफ 5 1 को डससे,पृत्र.. डाला था, और, मान्‌ ङ, ব্রন ৪:৬০ ডা सतयं राजा बन बढ़ा थां।, उसकी কখন श हु খ্ इसके টে करो ख़त मजबूत মনা कर्‌ ड्से गपु না राजधानी बनाई थी. उसीझे, बुंशपें शाह शयायुद्दीन हुओ, निल मुक्ते मानवक सय 8 19815 › ४६ 111) 11.14 ए ना मा বা शकते कृष्न ১০০১১121218 - ४ 88 न स्तन्न सुम्न किव নয ২ कषः संवत्‌ विक्कम টি सह। णण्रजेरहटजिणुहरु चंएड़ ६, (क । गंधसउर्णु तत्त्यइदुुजाय ३, चड वेद ंधर्सछुणिश्रणु रायड माघकिस्ट्टपंचमिंससिवाएं इः য় যব । गंथु सउण्णुजोउसुपंवित्तउ, कम्मक्शुउशिमित्त ज॑ उत्तद । दूसरी रचना 'घमंपरीक्षा है । इंसकी पुकमान्न अपूर्ण प्रति डा० द्वीरालाल जो ऐम० ए० नागपूरके पास है। जिसका परिचय उन्होंने अनेकान्त ब्रषं ११ किरण २ में विया हे । जिसते स्पष्ट है कि उक्र धर्मपरी काते १७२ कडवक हैं। दरिषेणको धमंपरीकाओं सम्बन्धमें डा० ए० एन० उपाध्ये एुस० ए० कोल्हापुर॑ने (पः 11.11.21... प्छ, 8) 2 एप) क्िसक परिचय उक्र शीषंक लेखमें दिया है जो द्धः १8७२. पन भारुडारकर रिसचदृन्स्टीट्यूट कः कषिकतर जुबली हूं? के एनाल्‍समें प्रकाशित हुआ है । थ्रोह्‌ जिसका -अचुवाद ;,झुनेकान्तके ८वे वर्षकी प्रथम किरि हो, चु, है | उसमें इस “धमंपराक्षा? का कोड़े, उज़्ज्लेख़ नहीं 8.1 तुलेंकि वह उन समय तक प्रकाशुमें; नहीं खाई; ।).. *৩.5 इम भन्थको [रि विते संबह $४९:२ कं बनाया हे । क्योंकि इसके 7 चेजज्मनेका টি हृति. इने दूमरे मन्ध परमेष्ठिप्रकाशसार में ,वि 1 धर ७६० सीस रुना परमेष्टिककाशला ह. इस भन्थकी *0800511482 91১01: 7156015 ०0 {1612.2. 309




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