वायुमंडल | Vayumandal
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बिपय-प्रवेश | १७
उल्काये
हम प्रायः आक्राशर्मे तारे दृटते हुये देखते हैं। थह
पत्थरके वदे-वदे टकडे है जो आकाशम चकर लगाते रहते
हं भोर पृथ्वीके वायुमंडमे पृथ्वीके गुरत्वाकषण (£781-
18110703 से श्रधिक वेगवान हो जाते ह । उस समय
इनका वेग छगसग १५ य २० मील प्रति सेकेंड होता है |
इनके अधिक बेगके कारण वायुके धषंणसे यह इतने श्रधिक
गरम हो जाते हैं कि चमझने लगते ह अतः हम হুল
देख सकते हैं। इन्हींको उद्का (17161९07 ) कहते
हैं। इन उल्काओंके पथ तथा किरण-चित्रसे वायुमंडलके ऊपरी
रतरांका घनत्व तथा बनावट निकाली जा सकती है । लिडमन
( 1.17001141 ) भौर डाबसन ( 1)0)807 ) ने
टत्काओंके पर्थोररी जाँचसे यह माछस किया है कि ऊपरी
सतरोंका तापक्रम २०*श के लगभग मानना पड़ेगा ।
ञ्योतिय |
यह बात सबको विद्ित है कि धथ्वीके श्लुवोके निकट
घः मास लगातार रात तथा दः मास लगातार दिन होता
दै । वषं रामे মিজু अंधकार नहीं रहता बल्कि कभी-
कमी पीडी या नारंगी रंयकी दीप्यमान ऽ्योतिरथौ दृष्टिगोचर
दोती हैं। उत्तरी भ्ुवकी ज्योतियोको सुमेरुज्योति (3 ७1018
100769)18) तथा दक्षिणी भ्रुवकों ज्योतियोंको -कुमेर-
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