वायुमंडल | Vayumandal

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Vayumandal by सालगराम भार्गव - salgaram bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बिपय-प्रवेश | १७ उल्काये हम प्रायः आक्राशर्मे तारे दृटते हुये देखते हैं। थह पत्थरके वदे-वदे टकडे है जो आकाशम चकर लगाते रहते हं भोर पृथ्वीके वायुमंडमे पृथ्वीके गुरत्वाकषण (£781- 18110703 से श्रधिक वेगवान हो जाते ह । उस समय इनका वेग छगसग १५ य २० मील प्रति सेकेंड होता है | इनके अधिक बेगके कारण वायुके धषंणसे यह इतने श्रधिक गरम हो जाते हैं कि चमझने लगते ह अतः हम হুল देख सकते हैं। इन्हींको उद्का (17161९07 ) कहते हैं। इन उल्काओंके पथ तथा किरण-चित्रसे वायुमंडलके ऊपरी रतरांका घनत्व तथा बनावट निकाली जा सकती है । लिडमन ( 1.17001141 ) भौर डाबसन ( 1)0)807 ) ने टत्काओंके पर्थोररी जाँचसे यह माछस किया है कि ऊपरी सतरोंका तापक्रम २०*श के लगभग मानना पड़ेगा । ञ्योतिय | यह बात सबको विद्ित है कि धथ्वीके श्लुवोके निकट घः मास लगातार रात तथा दः मास लगातार दिन होता दै । वषं रामे মিজু अंधकार नहीं रहता बल्कि कभी- कमी पीडी या नारंगी रंयकी दीप्यमान ऽ्योतिरथौ दृष्टिगोचर दोती हैं। उत्तरी भ्ुवकी ज्योतियोको सुमेरुज्योति (3 ७1018 100769)18) तथा दक्षिणी भ्रुवकों ज्योतियोंको -कुमेर-




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