विवेकानंदा साहित्य जन्मशती संस्करण खण्ड ३ | Vivekananda Sahitya Janmshati Sanskaran Khand-3

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vivekananda Sahitya Janmshati Sanskaran Khand-3 by

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
“हरेक अपने क्षेत्र में महान्‌ हैः साख्य मत के अनुसार प्रकृति--सत्त्व, रज तथा तम---इन तीन शक्त्तयो से निमित है! भौतिक जगत्‌ मे इन तीन शक्तियो कौ अभिव्यव्ति साम्यावस्था, ন্দিনাহীভবা त्था जडता के रूप मे दिखायी पडती है। तम की अभिव्यक्ति अन्धकार अथवा कर्मशून्यता के रूप मे होती है, रज कौ कर्मशीकता अर्थात्‌ आक- षण एव विकषण के रूप मे, ओौर सत्व इन दोनो की साम्यावस्था है । प्रत्येक व्यक्ति मे ये तीन शक्तियाँ होती हैं। कभी कभी तमोगुण प्रवलू होता है, तब हम सुस्त हो जाते हैं, हिल-डुछ त्तक नही सकते और कुछ विशिष्ट भावनाओं अथवा जडता से ही आबद्ध होकर निष्क्रिय हो जाते हैं। फिर कभी कभी कमेशीलता का प्राबल्य होता है, ओर कभी कमी इन दोनो के सामजस्य सन्व कौ प्रवलता होती दै। फिर, भिल्ल भिन्न मनुष्यो मे इत गुणो मे से कोई एक सवसे प्रवल होता दै । एक मनुष्य मे निष्कियता, सुस्ती ओर आलस्य के गुण प्रवरू रहते ह, दूसरे मे क्रिया- शीलता, उत्साह एव शक्ति के, और तीसरे मे हम शान्ति, मृदुता एव माधुयं का भावं देखते है, जो पूर्वोक्त दोनो गुणो अथति. सक्रियता एव निष्करियता का सामजस्य होता है। इस प्रकार सम्पूणं सृष्टि मे--पशुमो, वृक्षो मौर मनुष्यो मे--दहमे इन विमिन्न शक्तियो का, न्यूनाधिक मात्रा मे, वेशिष्ट्यपूर्ण अभिव्यक्ति दिखायी देती है। कमेयोग का सम्बन्व मुख्यत इन तीन शक्तियो से है । उनके स्वरूप के विषय मे तथा उनका उपयोग कंसे करना चाहिए, यह्‌ वतलाकर कर्मयोगं हमे अपना कार्य अच्छी तरह से करने की दिक्षा देता ই। मानव-समाज एक श्रेणीवद्ध सगठन है । हम सभी जानते हैँ कि सदाचार तया कर्तव्य किसे कहते है, परन्तु फिर भी हम देखते हैं कि भिन्न भिन्न देशों से सदाचार के सम्बन्ध मे अलग अलग धारणाएँ हैं। एक देय मे जो वात सदाचार मानी जाती है, दूसरे देश मे वही नितान्त दुराचार समक्षी जा सकती है । उदाहरणार्थ, एक देश मे चचेरे माई्-वहिन आपस मे विवाद कर सकते है, परन्तु दूसरे देश मे यही वात सत्यन्त अनैतिक मानी जाती है । किसी देश में छोग अपनी साली से वियाह कर सकते हैँ, परन्तु यही वात दूसरे देश मे अनैतिक समझी जाती है। फिर कही कही छोग एक ही वार विवाह कर सकते हं मौर कदी कही कई वार, इत्यादि इत्यादि 1 इसी प्रकार, सदाचार की भन्यान्य




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now