आलोचना | Alochna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महाकाव्य के उद्भव की सामाजिक व्याख्या ६ साहसपूर्ण कार्यों का वीर-गीत के रूप में प्रारम्भ वीर-युग मे ही हो गया था | वीरों के मरने के बाद भी उनकी गाथा गाई जाती थी, धीरे-धीरे एक वीर से सम्बन्धित श्रनेक गीत कुछ पीढियो के वाद मिलकर एक हो जाते थे । यही महाकाव्य कहलाने लगते थे । यह महाकाव्य के विकास की दूसरी मजिल है । इस मजिल पर महाकाव्य का रूप होता है अर्थात्‌ उसे गाने या पाठ करने में चरणों को स्वतन्त्रता होती हैं कि वे झ्रपनी रुचि के श्रनुसार उसमें कुछ जोडें या घटाएँ, वयाकि श्रतीत की कथा के श्रोतात्रों को निश्चित जानकारी नदी रहती । तीसरी मंजिल मे प्राचीन वीरें के का सामान्य जनता श्रपने ढंग से रूप बदलती रहती है; वे निजन्घरी कथा का रुप घास्ण कर लेते हे उनसे मूल कथा का दॉचा तो बना रद्दता हे किन्तु उसपे मवीन मास-रक्त भरकर पहले की कई श्रसम्बद्ध गाथादओ के मिश्रण द्वारा उसे नवीन रूप दे दिया जाता दे प्महामारत' इसका सबसे अच्छा उदाइर्णु है । यूनान के हिसियड का काव्य इसी मंजिल का है; रस में १६वी शताब्दी में किसानों के यहाँ से प्रात महाकाव्यों को भी इसी मंजिल का समभना चाहिए । इस इस मजिल से वीर-गीत दरबारों से निकलकर जनता की वस्तु बन जाते हैं । दिन्दीं में इसी प्रकार का वीर-क्राव्य है । भारतीय महाकाव्यों के विकास के सम्बन्ध में प्रोफेसर एन० के० सिद्धान्त का मत है कि पहली मंजिल के वीर-गीत वे है जिनकी रचना महदामारत- युद्ध के काल में हुई थी । उस काल के राजाश्रो के चारण पुरोहित-वर्ग के नहीं क्षत्रिय या वीरो के वर्ग के होते थे, उनका सम्मान कम नहीं था | पुरुखा, नहुप श्रौर ययाति की कथाएँ. इसी मजिल की हैं। दूमरी मंजिल मे प्राचीन वीर-गीतो के ्राधार पर महाकाव्य का मूल रूप निर्मित हो गया। मूल “भारती-कथा” उसी मंजिल की रचना रही होगी जिसमे पुरानी वीर-गायाएँ. उपाख्यान के रूप में सम्मिलित कर ली गई थी । तीसरी मंजिल पर राजनीतिक परिरिथतियों में बहुत परिवर्तन गया था । छोटे-छोटे राज्यों के स्थान पर बड़े साम्राज्य स्थापित हो गए न जिनसे उन ठस्वारों में सूत-मागधों की संख्या भी कम ही रही होगी; ्तः आअधिकाश सूत-मागथ जनता के बीच्च काव्य-गान करने लगे । ब्राह्मणों के प्रभाव से भी सत-मागधी का महत्व बम हों गया श्र 'घीरे-घीरे ब्राह्मणों ने पुराण-श्राख्यान पर एकाबिकार स्थापित कर लिया । रसका परिणाम यह हुआ कि महाकाव्य भी धार्मिक रग में रंग गए, उनकी मूल कथा के वीर पात्र का मह्त्र कम हो गया श्रौर धार्मिक झाख्यान ओर उपदेश ही प्रधान हो गए, । “महाभारत” के पचम वेद माने जाने का यही कारण हैं । इस काल मे पुरोहित ही पौराणिक बन गए, पर वे रत मागथ नहीं थे श्र दरवारो से उनका श्राधित रूप में ही सम्वन्ध रह गया; क्योंकि उनकी बाद का राजा छॉर सामान्य जनता सभी चार्मिक भावना के कारण सामान्य रूप करत थे | रस प्रकार महावाव्य के उद्धव श्और विकास की कहानी युगों की धारा में बहने वाले वीर- गाता, निजन्धरी व थाद्यों दर ऐतिहासिय पुरुषों के विकास की कहानी है, जिन्हे निमित ला पर एक या व्यक्ति नहीं हैं; बल्कि युग-युग के मानव-समाज ने मिलकर अपने- रे आर कि दर टय से टनका निर्माण किया हैं । विकसित महाकाव्यो की 7 न मसलन हे पर सकते हु । ये महावाव्य न. जानें बितने युगों मे क्तिसे कएटो वी शक्ति से रुप ग्रहण करके अपना वर्तमान मरथा पारम्न होने वाद उनके स्वस्प में कुछ रिथिस्ता




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