| Gandhiji Ki Adhyatmsadhana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
34
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सरोजिनी नानावटी - Sarajoni Nanavati
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गांधीजी की श्रव्यात्मसाधना १३
~~~ ~~ ~~~ न -----------------
सत्रा करना हो ता अ्रजाकी मस्वादाओंका भी स्वीकार करना
पड़ता ६17 झुनके अिन वचनोंके पीछ भी सामुदायिक साधनाकी
दवा इत्ति थी। जो सबको मिला नहीं असका अपयोग स्वयं नहीं
करता--बह आअुसक्ी अंक वाजू है। ओर जिन मरवादाओंका
संत्रका मजबूरन स्वीकार करना पड़ता है अुनका नव स्वेच्छासे
स्वाकार करना--बह असकी दूसरी वाज हक | दानसि गांधीजी
का आध्यात्मिक साधनाकी विशेषता स्पष्ट होती
सत्यका शाधर्म जिस तरह अुन्दोंन जीवनके अनक प्रयोग
कि युस प्रकार सत्यनिष्ठ लोगकिं पासते सहवास, शुध्रपा जर
पारप्रल दुत्रारा अवश्यक ज्ञान प्राप्त करनेकी भी कोशिश की
६1 सन्तकरं वचनपिरक्र युनक्रा विश्वास शास्त्र-बचनके प्रति
उनका आदर-भाववा ओर अस-भुस विषयोक्ति तद्विदां, जान-
काराक ঘা पत्र-यवदह्ार दवारा और सस्भापणां दवार
जानक्राय दासिल करनेकी अनकों तत्परता--यद भी सिसी
कोशिशका दूसरा पहल ই। तदविदोंके पाससे जानकारी प्राप्त
करक भी जनके अभिप्राय अपने जीवन-सिदृ धान्तेपर कते चिना
वे साकार नदं करत ये । चद् ञयुनकी विशेषत 1 भी ध्यानम हने
लायक ह |
यनक जावन-करमयोगने ही अन्दे सत्यनिरणयक्री कसरी दी
ओर ग्राहब-अग्राहय तय करनेक्े लिअ छल्ननी दी; ओर सिसे
भा विश यह कि जीवन-कर्मयोगने दी सिः धान्ताका पालन
करते कॉनिसी बुगमरयादाओंका स्वीकार करना चाहिओ, यह भी
यता दिया |
स्वयं जब दुक्पण आफ़िकासे ये, तव वह्ांक आक्रिकन
लागाक आधकारका सवाल अन्होंने हाथमें न्दा लया; मांसा-
हास्त्यागका अचार भारतमें भी अन्टनि नहीं किया; गोरक्पाके
सवालको अन्द्रोने गोसेवाका रप डिया; ये त्तीन अुदाहरण हो
User Reviews
No Reviews | Add Yours...