वीर विनोद भाग 2 | Veer Vinod part-ii
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.18 MB
कुल पष्ठ :
296
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महाराणा जयलिंह. वीरविनोद सुखहकी दार्ते -६५९७ सं न. पल मु व ः हल दि नल बिक करना कया बे वन भय पिया घर हा किये हैं. दीवार नहीं वनानेसे चित्तौड़ वर किठोंकी मरम्मत नहीं करानेका मत्ठब होगा हजार सवारकी नोकरी जो बादशाह जहांगीरके वक्तसे दक्षिणशकी तरफ़ न जप मनन छड़ाईके वारेमें कर्नेठ टॉडने लिखा हें कि सूरसिंह सीसोदिया और नरहर भट्ट चादशाहकी खिदमतमें गये ओर नीचे ठिखीडुई दर्स्वस्त पेश की - अलविदा ही केश करनेके ठिये जो नीचे दर्ज हे मेजा है. उम्मेद है कि हुजूर इन नियम भरे मुल्क वापस दिया जावे च्ौर छोटी छोटी दख्वॉस्तोंको अद्ब रोकता है ही से उनको न रखनेका हुक्म है. मुकर्रर हुई थी शायद वह मुझाफू हुई हो राठोड़ॉपर वादशाही नाराजगी थी इस फ्सोस है कि अ्स्ठ फुर्मान नहीं मिठा वर्ना सारा मत्ठव खुठ जाता. माठूम होता है कि मांडठगढ़ मांडठ पुर त्और बदनौरके पर्गने दिठाने और जिज़्या मुझ्राफू करवानेका वादा शाहजादहने किया होगा जो गद्दीनशीनीके वक्त वादशाही फर्मान या हे उसका खुठासह आगे ठिखेंगे जिससे जाहिर होगा. इस अर्जी हुजूरकी मर्जीके सुवाफिकू रानाने हम फ़िंट्वियोंको हुजूरकी खिद्मतमें वह तहरीर मंजूर फुर्ाविंगे और जो कुछ इसके वाद पद्मसिंह दर्ख्वस्त करेगा उसको भी | . कुवूठ होनेका दरजा वरना जावे- १ चित्तोड़ मए तमाम उन जिठोंके जो पहिठे उसकी आवादीके वक्तमें उसके थे वापस करें. ज २ मन्दिर ओर हिन्दुओंके इवादतखानोंकी जगह जो मस्जिदें बनाई गई हैं च्प्रागेको इस तरह न वनवाई जायें ३ मदद जो राना वादृशाहतकों देता आया हे हमेशह देता रहेगा उसमें | कोई नई बात या नया डुक्म न बढ़ाया जावे राजा जदवन्तके बेटे या रिइतहदार जव अपने का्मोके लायक हों .उनका 2 52 रा पी दि पा त्ी दर हू
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