वृहज्जेनवाणी संग्रह | Vrihjjenvani Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
570
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1 ধা ৯৯
कोपादिय खडगरयि तब प्रसादेन ममास्तु शक्ति।॥२॥ ३
दुःखे एदे पैरिणि बुव योगे वियोगे येने पने बा । निर- ৃ
সরাইিঘঘনজনুরঃ বধ मनो मेस्तु सदापि नाथ ॥३॥ तीव |
लीनावित कीलीताविव स्थिरों निसाताबिव विविताविव ।
पादौं लवदीयो मम तिष्ठतां सदा तमोधुनानों हृदि दीपका- ॥
2 विव ॥ ९॥ एकेद्रियाधा यदि देव! देहिनः प्रमादत |
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22 ৮ ~
পর এ
£ संचरता इतस्ततः | क्षृता विभिन्ना मिलिता निपीड़िता
स्तद॒स्तु भिथ्या दुरनुष्ठित तदा ॥५॥ विश्वुक्तिमार्गप्रतिकूल-
वचिना मया कंषायाक्षूपशेन दुधिया | चारि्रशुद्धेयदकारि
रोपनं तदस्तु मिथ्या मम दुष्कृत प्रभो || ६ ॥ विनिदनारो {
चनगैयैरह, समोवचःकायकपायनिरभितं । निहन्मि परां
मवहुःखकारणं বিঘা मंत्र; णैरिवाखित | ७ ॥ अति
স্ব यदिमतेब्येतिक्रंम जिनातिचारं सुचिरित्रकम्मेण! |
व्यधामनाचारमपि प्रमादतः प्रतिक्रम तस्य फरोमि छुद्धये
। ८ ॥ क्षति मन/शुद्धिविधेरतिक्रम व्यक्तिकर्म रीरि
घने । प्रभोगतिचार विषयेषु वैनं पदंत्यनाचारमिहा
तिसक्ततां ॥ ₹ ॥ यदर्थपात्रापद्वाक्यहीन गया प्रमादा-
चदि किपनोक्त । तन्मे क्षृमित्वा विदधातु देवी सरखती
$ केवलबोधलब्धि ॥ १० ॥ वोधिः समाधि! परिणामशुद्धि।
स्वात्मोपलब्धि! शिवसोरुपसिद्धि। चितामणि चितित-
{ वस्तुदाने त्वा यै्यमानस्य ममास्तु देषि॥ ११॥ यः स-
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