वृहज्जेनवाणी संग्रह | Vrihjjenvani Sangrah

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Book Image : वृहज्जेनवाणी संग्रह  - Vrihjjenvani Sangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 ধা ৯৯ कोपादिय खडगरयि तब प्रसादेन ममास्तु शक्ति।॥२॥ ३ दुःखे एदे पैरिणि बुव योगे वियोगे येने पने बा । निर- ৃ সরাইিঘঘনজনুরঃ বধ मनो मेस्तु सदापि नाथ ॥३॥ तीव | लीनावित कीलीताविव स्थिरों निसाताबिव विविताविव । पादौं लवदीयो मम तिष्ठतां सदा तमोधुनानों हृदि दीपका- ॥ 2 विव ॥ ९॥ एकेद्रियाधा यदि देव! देहिनः प्रमादत | 1 22 ৮ ~ পর এ £ संचरता इतस्ततः | क्षृता विभिन्ना मिलिता निपीड़िता स्तद॒स्तु भिथ्या दुरनुष्ठित तदा ॥५॥ विश्वुक्तिमार्गप्रतिकूल- वचिना मया कंषायाक्षूपशेन दुधिया | चारि्रशुद्धेयदकारि रोपनं तदस्तु मिथ्या मम दुष्कृत प्रभो || ६ ॥ विनिदनारो { चनगैयैरह, समोवचःकायकपायनिरभितं । निहन्मि परां मवहुःखकारणं বিঘা मंत्र; णैरिवाखित | ७ ॥ अति স্ব यदिमतेब्येतिक्रंम जिनातिचारं सुचिरित्रकम्मेण! | व्यधामनाचारमपि प्रमादतः प्रतिक्रम तस्य फरोमि छुद्धये । ८ ॥ क्षति मन/शुद्धिविधेरतिक्रम व्यक्तिकर्म रीरि घने । प्रभोगतिचार विषयेषु वैनं पदंत्यनाचारमिहा तिसक्ततां ॥ ₹ ॥ यदर्थपात्रापद्वाक्यहीन गया प्रमादा- चदि किपनोक्त । तन्‍मे क्षृमित्वा विदधातु देवी सरखती $ केवलबोधलब्धि ॥ १० ॥ वोधिः समाधि! परिणामशुद्धि। स्वात्मोपलब्धि! शिवसोरुपसिद्धि। चितामणि चितित- { वस्तुदाने त्वा यै्यमानस्य ममास्तु देषि॥ ११॥ यः स- भ 9 000४ द “फेर ग ~> 4 14. ০০ সবে न ~< 94 22 >




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