श्री वर्द्धमान महावीर | Shree Varddhman Mahaveer

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अहिंसा का पालन नदी तो सुख शान्ति कां इसी लिये तो मांस का त्यामी न होने के कारण भहात्मा बुद्ध क्री अ्दिसा का उतना अधिक प्रभाव सर्वसाधारणं. पर नही -पड़ संका जितना कि मांसाहार के त्यागी महात्मा गांधी का -प्रड़ां है। विश्वशान्ति की प्राप्ति के लिये श्री स्वामी समन्तभद्र ने अपने स्वयम्भू स्वोत्र में एक और उत्तम बात बताई हैः-- स्वदोष.शान्त्या विद्विता55त्मशान्ति श/न्तेर्षियाता शरण ग़तानाम्‌ । भूयाक्धव क्लेश सयोपशान्त्ये शान्तिजिनो मे भगवान्‌ शरण्यः ॥ ८० ॥ লানাথ ~ राग-द्ेव करने से क्रोध, मान, माया, लोम, चिन्ता, भय आहि कषायरूपी श्रग्नि की उत्पत्ति टो जाती दै, जो जीव को स्वाभाविक सुख-शांति को जला देती है। जिन्होंने राग-हेंष,सन,ईंद्वियों को सम्पूर्ण रूप से जीतकर सच्ची सुख-शात्ति को आप्त कर.लिया है थे केवल 'जिनेन्द्र भगवान हैं। जो स्वयं किसी पदार्थ को. प्राप्त कर लेते हैं वे ही उसकी' प्राप्ति को .विधि .दूसरों को, बता, सकते द । इस लिये सच्चे सुख ओर शान्ति के अभिल्ााषियों को श्री जिनेन्द्र भगवान के अन्नुभवों से ज्ञाम 'डठाना उचित है। इतिहास बताता है कि श्रीवद्धमान महावीर राग.देष, कोध, मान, माया, लोभ आदि १८ ढोषों तथा मन और इन्द्रियों को. सम्पण रूप से जीत कर अविन।शिक सुख-शान्ति आप्त करने वाले-जिनेन्द्र भगवात्न है, जिन्होंने वर्षों के कठोर तप, त्याग, अहिसा प्रत-संयम दवारा सत्य की खोज की । स्वयं राज्याधिकारी और उस समय के सारे राजाओं-महाराजाओं पर अत्यधिक प्रमाव होते हुए भी उन्होंने युद्ध का दवाव या राज-दरुड का भय देकर अपने सिद्धान्तो को जनता पर.थोपने का यत्न नही किया,.चृल्कि जब उन्होंने देखा कि जिह्वा के स्वाद के लिये लोग देवी-देवताओं और धर के नाम पर जीव-हिसा करले सें स्वर्ग की प्राप्ति तथा आनन्द सानते हैं तो उन्होंने जनता से कद्दा कि तुमे जेन घर्स के सिद्धान्तों को .इस { २१




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