मनुस्म्रति | Manusmriti

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Manusmriti by पं. तुलसीराम स्वासिना - Pt. Tulsiram Swasina

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महु० बिपयूदी | १३ ) छाण्छे प्राण के धमकी न देना आदि। श्रघार्मिकादि सुग्व नहीं पाते, भफर्म कभी न फरे, अधर्म शीघ्र नहीं ता देर-सें अवण्य नाश करेगा, इत्यादि ११६-१११ हाथ पांच नेश्नादि से चपलता न करे, बाप दादी के सन्माग पर चले, श्र त्विजादिसे विवाद न करे 1१99-1८ भानार्य आदि के खामी हैं १८९-१८१ प्रति्रह लेने से बचे, प्रतिग्रह के नियम ८६-१६ १ वैडालबृतिकादि के दान न देना इत्यादि १६२-२०० पराये जलाशय में न नहानों, बिना दिये यानादि घरनि बाला स्वामी के चतुर्थाश पाप का भागी है, नद्यादि में रनान करना, थी का अवश्य सेचन करना, यम, नियम की गणना २९१-२०४ के रचित यक्ष में भेज्ञन न करना, मदमत्तादि का भाजल, गौ सू था मेजन आदि चौरादिका मेजन, चुनकान्न, असनुफृतादि अन्न और पिशुनादि का अन्न दै.... ९०५-२१३ त्याज्यान्न मशषण के मिन्न २ दुष्फ ल, निन्‍्दा, घ्राह्मणान्न को प्रश॑मा,* श्रद्धा से दिये की प्रशंसा २१८-९२६ दानप्रण पा, मिन्न २ दानें के मिज्नर फल, ब्र्रान की ध्रेछ्ठता, तप से गव न करना इत्यादि. २९२३-२३ 'घर्मकी प्रशना, सृत्यु होनिपर भी चर्मका साथ जाना २३८-२४३ उच्चों से सम्बन्धादि करना २४४-२४५ मद जिनेल्द्रिय को प्रशसा ९४६ *पथादकादि भिक्षाका निपेश्र न करे” इत्यादि प्र० १४9-२५३ भीतर बाहर 'एक सा बर्ताव अन्यथा नहीं २५४-९५६




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