पद्य-प्रमोद | Padam Prmode

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Padam Prmode by जगन्नाथप्रसाद शर्मा - Jagannathprasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यमुना-वर्णन मधुरी नौवत वजत, कहूँ नारी-नर गावत । बेद पढ़ृत कहूँ द्विज, कहुँ जोगी ध्यान लगावत ॥ कहुँ सुन्दरी नहात बारि कर-जुगल उलारत। जुग अम्बुज मिलि मुक्त-गुच्छ मनु सुच्छ निकारत ॥ धोषत सुन्दरि वदन करन अति ही छत्रि पावत | वारिधि नाते ससि कलङ्क मनु कमल भिटावत ॥ सुन्दरि सखि मुख नीर मध्य इमि सुन्दर सोहत । कमलवेलि लहलदी नत्रल कुसुमन मन मोहत ॥ दीठि जहीं जहाँ जात रहत तितही ठहराई। गड्गा छवि हरिचन्द कछू बरनी नहिं जाई॥ ~ यसुना-वणेन ( ४१) तरनि-तनूजा-तट तमाल-तरुवर बहु छाये। मुके कूल सों जल परसन-दित मनँ सुदाये ॥ करथो मुकुर मे लखत उद्चकि सव्र निज निन्न सोभा। कै प्रनवत जल जानि परम पावन फल लोभा॥ मनु आतप-ब्ारन तीर कों सिमिटि सत्रै छाये रहत। के हरि-सेवा द्वित ने रहे निरखि नेन मन सुख लह्द॒त ॥




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