भूखा अंकुर | Bhookha Ankur

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Bhookha Ankur by धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महकती शाम श्रौर भूख ! कनॉट प्लेस | नई दिल्‍ली का जगमगाता स्वर्ग...आधुनिकता के मादक रंग मे सरावोर प्रामोद-प्रमोद का प्रमुख आकर्षण द्र श्रपनी सम्पूणं ्राभा के साथ जगमगा रहा था । ऊपर आसमान पर भूरे बादलों में घृमिल-धुमिल टिमटिमाते तारे छिंटके हुए थे । रह-रह कर बादलों में बिजली कौंध रही थी । वातावरण काफ़ी ठंड लिए हुए था.. ठंड जो गर्मी पर विजय पाने का जैसे डंका पीट रही हो । अंधेरे में, चमेली के फूलों से भरी एक त्रिकोशाकार क्यारी के साथ पड़ी हरे रंग की वैच पर मैं पाक के एक भाग में बेठा हुआ था। बस, ऐसे ही बेठा था, कह लो--बेकार । क्‍ पीछे पग-ध्वनि सुनाई पड़ी । घूम कर देखने को मन . हुआ, पर बैठा रहा | ठीक मेरे पीछे कोई झ्राकर रुका | आहिस्ता से दो बाजू बच पर टिके। तब साड़ी की सर- सराहट ! मैं कुछ घबराया। पलट कर देखना ही चाहता था कि फिर रुक गया। एक श्रजीब सी महक से मैं अन्दर-बाहर सुवासित हो उठा। मैं कुछ कहूँ, अपनी महक्ती ज्ञामश्रौरभृूख { = ज १७.




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