ग्रामीण विकास में महिलाओं की भागीदारी एक समाजशास्त्रीय अध्ययन | Gramin Vakas May Mahilon Ki Bhagadari Yek Samajsastriya Adahayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
129 MB
कुल पष्ठ :
306
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वहां की स्त्रियों ने पहली बार अपने अस्तित्व के बारे में गम्भीरतापूर्वक सोचना शुरु किया।
विदेशों में जो महिला आन्दोलन चल रहा है उसके पीछे कुछ पुख्ता कारण है वहाँ
आधुनिकता, तार्किकता, प्रजातंत्र, पूंजीवादी अर्थव्यवस्था एवं तकनीकी शिक्षा का प्रभाव है।
इसके परिणामस्वरूप महिलाओं ने अपने अधिकारों की मांग की है। सन् 1960 के दशक
में यूरोप में क्रान्तिकारी नारीवाद का जन्म हुआ। यह नया नारीवाद केवल कानूनी समानता
नहीं चाहता और न यह वर्ग के मुददे को उठाता है। उसका यह कहना है कि महिलाओं
का दमन जैविकीय आधार पर किया जाता है। महिलाओं की जननेन्द्रियां पुरुषों से भिन्न
है और यही उनकी कमजोरी है। इससे वे मुक्ति चाहती हैं उनके ऊपर प्रजनन और मातृत्व
का बोझ होता है और इसी कारण पुरुष उनका शोषण करते हैं। विदेशों में उत्तर
आधुनिकता ने नारीवाद को एक नई हवा दी है।
भारतीय आधुनिक महिला आन्दोलन को पश्चिम के महिला आन्दोलन से पृथक |
करके नहीं देखा जा सकता। भारत तथा अन्य देशो मे पुरुष प्रधान समाज ने स्त्रियों को
` एक वस्तु मानकर उनके साथ व्यवहार किया। भारतीय महिलाओं की स्थिति काफी सोचनीय
थी। यहाँ 17वीं शताब्दी से महिला जागरण आन्दोलन की बयार चलना प्रारम्भ हर्द ओर `
उसे गति देने मेँ उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग ओर शहर की पढी-लिखी महिलाओं का विशेष
` योगदान रहा है। भारत मे नारी मुक्ति आन्दोलन का प्रारम्भ नवजागरण জাল দ হী ভী
गया था जिसके उन्नायक राजाराममोहनराय तथा अन्य सुधारक थे। इनके अलावा गांधी जी
ने सन् 1921 के बाद चलने वाले असहयोग आन्दोलन में महिलाओं की भागीदारी को
पक्का किया ओर स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद कुछ महिलायें राष्ट्रीय जीवन की प्रत्येक धारा
में कानूनन रूप से पुरुषों के बराबर हो गयी।
ध भारत में वेदकालीन समाज से लेकर 18वीं सदी के अंत तक स्त्रियों के प्रति काफी
। परिवर्तन हुभ। स्तयो को अलग व्यक्त्ति के रूप मेँ देखा जाने लगा। नारी के कार्यो मँ |
भले ही मतभेद हो किन्तु समाज में स्त्री उच्च स्थान की अधिकारिणी है। एेसी विचारधारा
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