बुंदेलखंड के दलित अभिजनो का समाजशास्त्रीय अध्ययन | Bundelkhand Kay Dalit Abhijano Ka Yek Samajsastraya Adahayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
108 MB
कुल पष्ठ :
199
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महात्मा गधी ने अस्पृश्यता को परिभाषित करते हुए लिखा ह.
“किसी निश्चित स्तर के परिवार मेँ जन्म लेने वाले सदस्य के स्पर्शं मात्र से
अपवित्र हो जाने की स्थिति अस्पृश्यता हे 1“
डो. अम्बेडकर के अनुसार, “अस्पृश्यता का आधार गंदगी,
अपवत्रिता तथा छूत लग जाने की कल्पना तथा उससे मुक्त होने का तरीका
व साधन है। यह एक स्थायी वंशानुगत कलंक है जो किसी प्रकार मिट नहीं
सकता हे *“
प्रभाती मुखर्जी ने अपने अध्ययन “बेयोंड द फोर वर्णाज, द
अनटचेबल्स इन इंडिया (1988) में अस्पृश्यता को परिभाषित करते हुए लिखा
कि “स्पष्ट रूप से अस्पृश्यता का प्रथम लक्षण है कि वे हिन्दू जातियों के
लिए अस्पृश्य हँ तथा द्वितीय, हिन्दू आबादी से पृथक आवास, हिन्दू जातियों
साथ सहभोज एवं वैवाहिक सम्बधों का निषेध सामयिक लक्षण हे |“
परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि अस्पृश्यता एक स्थायी कलंक
के ऊपर सदियों से थोपा गया है। यह एक ऐसी
या हे जिसमे निम्न जाति के सदस्य दारा उच्च जाति कं सदस्य को स्पर्शं
कर लेने मात्र से वह अपवित्र हो जाता है एवं उसे पुनः पवित्र होने के लिए
कुछ संस्कार करने पड़ते है । अब यद्यपि शारीरिक एवं भौतिक अस्पृश्यता के
व्यवहार मेँ बदलाव आया है, लेकिन उसका स्थान मनोवेज्ञानिक अस्पृश्यता ने
ले लिया है। हिन्दू समाज का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहाँ वर्ण श्रेष्ठता,
और अस्पृश्यता की मानसिकता न दिखाई देती
| वर्ण,
7 हिंगोरानी, ए. टी. (एडी), माई फिलॉसफी ऑफ लाइफ बाई महात्मा गाँधी, बॉम्बे, पीयर्ल पब्लिकेशन्स प्रा. लि. 1961, पृ.
146
1४ अम्बेडकर, दी. आर, द अन्टचेबल्स, गोंडा, भारतीय बौद्ध शिक्षा परिषद, द्वि. सं., 1969, पृ. 1, 26
मुखर्जी, प्रभाती, बेयोंड द फॉर वर्णाज : द अन्टचेबल्स इन इंडिया, शिमला, इंडियन इन्स्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी,
1988, पृ. 14 ৮৮ 8
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