महिला मनोरमा | Mahila Manorama
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.55 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)माता
माता
नकद ६५१1
(९)
जननी | तेरी उपमा तुभक बिन तीन लोक में कद्दीं नहीं ,
सागर की उपमा सागर बिन कभो किसी ने कद्दी नहीं ।
सामग्री रचना की जिस दिन प्रकृति कप में भरी गई ,
उसमें सार झमूल्य रल मावृत्व-कला ही घरी गई ॥
(९)
विश्व विकाश रुप जननी हैं, हैं जननी जग जीवन-दा ,
झराडज, पिरडज थादि सुष्रि की जननी ही हैं. ज़न्म-प्रदा ॥
उत्पति, पालन विकट कार्य के जो न शीश जननी धरती ,
कैसे इस झाकाश गर्भ में मूर्ति जगत की लख पड़ती?
(३)
जग विस्तार सूल जननी हैं झादि शक्ति की झादि खुता
हैं सब पूज्य समान मुझे पर तू विशेष मेरी माता
मन में भी नव मास निरन्तर कौन मुझे था रख खक्ता ?
पर तू ने सानन्द गभं में रखा सीप में ज्यों मुक्ता ॥।
(४)
श्् ७
न्ह्मचय धारण कर तू ने मन इन्द्री खब दमन किया ,
समुदित हृदय विकार वासना जान ज्ञान से शमन किया 1
गमन किया शाश्दत स्वघम पथ सदाचार ब्यवद्ार किया ;
क्रोध नटूरता लोभ ग्॑ तज विनय शल छाधघार किया |
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