प्राचीनकाल में भारतवासियों के प्रवास | Prachin Kal Me Bharatvasiyon Ka Pravas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अथम अष्याय २१ कम्बोडिया ( कम्बुन देश ) नन सु इसी के कितने ही वर्ष पूर्व भारतके पू्दीय निरेके कितने ही निवासी कम्बोंडिया में पहुँचे । इन लो्मों का वहाँ चर बहा प्रमाव पढ़ा और इन्हेंने वहाँ हिन्दूधर्म ओर संस्कृत माया का सूब प्रचार (किया ( अँप्रेजी विश्वकोप में लिखा हे+- त पच प्ाप्व्यमे०् मम षवदत छण ण्यो कोष्णे पर 540 কোট &১ 0৮ সঠত০ রত हवपएकययाक्य ६९ ए पद९8 হও ছি 26107 1०१6 1980 फा07र9०३००, 116 08709 1९8090०)५, 1९४०७ ६016 2268059% (0720 05005041555 ৫521৩ 16০00 (४० তর উট 1४० 5522৩ 01 08৩ 20] 0৮5৯] (৩০৫৩: ০৫ 85৩ 70050508150, 5 অখার-৫ ৭ वीं शताब्दी में हिन्दूमतका प्रचार जोर शोर के साथ হীন তমা আঁ অন बारें हिन्दू दढ़ः में दाढ़ी जाने टर्गी। श्रुतवर्मा डे आदिवत्प में फमेर ठोगों की जाति ने टी उ्नति खी) कम्बू शब्द सेरकृत के कम्बु शब्दंस निकटा हुआ है। कम्ब पोराणिक आएयानों के अनुसार समेर जाति के संस्थापक थे। कम्बुज से ही अग्रेजी नाम कम्देडिया वन गया है ॥ ” खाती शताब्दी के अन्त में श्रुतदर्मा के दंश का अधिझार कम्बी- दिया पर से जाता रहा | आठवीं शताब्दी में डम्बोडिया दो मार्गों मे विभक हो गया ओर उन दोनों भागों पर দিম দিল জী হালা বাহ কলে তটী | লী ঘন भै दूतीप जयद फ्रे उमय में समेर जाति अपनी उप्नाते ढ़ी उच्चतम शिस्तर को प्राप्त हुई । इसी बेशके जरणहने में बढ़े घड़े हिल्दू सान्देयों और मदनों का निर्माण हुआ। अद्र नाम मगर यज्ञोवर्मा के राज्यकाल में रूख ९०० ईस्ी के हम्मय बनबया गया। दुसदी शताब्दी में दोद्धपर्न झा प्रचार आग्रोद्िया में बदले কলা ३




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