कालिदास नमामि | Kalidas Namami
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
163
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२
उत्तरमेच की अलका
क
उत्तरमेष की भ्रलक। हिमालय कै तुषारादृत शिखरों की
छाया मे बसी थी । उस मानसरोवर के पास ही जिसके निर्मल
कंलासप्रतिथिबित मीठे जल में हैमकमल खिलते हैं, जहाँ हंसो के
जोडे निस्पन्द वहते-से एक प्मपपत्र की छाया से निकल दूसरी
का झाश्य करते हूँ. ।
वही, उस मानस के तीर शिव का दिन-दिन का राशीभ्रुत
अट्टृहास कैलास है 1 स्फटिकवत् स्वच्छ, जिम्के दपण में देव-
ललनाएँ अपना मुंह देख मंडन करती हैं। उस गिरिवरे की
सन्धियों को कभी रावण ने ककफोर कर ढीला कर दियाथा। ,
उसके श्वेत शिखरों के दल ग्राकाश में दूर तक फैले हुए हैं,
कुछुद को पंखुडियों की तरह ।
+ उसी कंलास की ढलान पर झलका वद्ी है, भ्रणयी की गोंद
-में बैठी प्रशयिनी-सी | और उसकी ढलान॑ से गेंगा. की इवेत
धारा जो उतरती दीख़ती है, लगता है ज॑से विलासगत प्रिया की
साड़ी नीचे सरकती चली गई हो ॥ अलका के ऊँचे भवनों पर
वर्षा ऋतु में जब रिमशिम वरसते धु्वा-से मेंघ जा बैठते है तव
वे ऐसे लगते हैं जैसे कामिनियों के मस्तक पर मोत्तियों के जाल
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