कालिदास नमामि | Kalidas Namami

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Kalidas Namami by कमलपति मिश्र - Kamalpati Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ उत्तरमेच की अलका क उत्तरमेष की भ्रलक। हिमालय कै तुषारादृत शिखरों की छाया मे बसी थी । उस मानसरोवर के पास ही जिसके निर्मल कंलासप्रतिथिबित मीठे जल में हैमकमल खिलते हैं, जहाँ हंसो के जोडे निस्पन्द वहते-से एक प्मपपत्र की छाया से निकल दूसरी का झाश्य करते हूँ. । वही, उस मानस के तीर शिव का दिन-दिन का राशीभ्रुत अट्टृहास कैलास है 1 स्फटिकवत्‌ स्वच्छ, जिम्के दपण में देव- ललनाएँ अपना मुंह देख मंडन करती हैं। उस गिरिवरे की सन्धियों को कभी रावण ने ककफोर कर ढीला कर दियाथा। , उसके श्वेत शिखरों के दल ग्राकाश में दूर तक फैले हुए हैं, कुछुद को पंखुडियों की तरह । + उसी कंलास की ढलान पर झलका वद्ी है, भ्रणयी की गोंद -में बैठी प्रशयिनी-सी | और उसकी ढलान॑ से गेंगा. की इवेत धारा जो उतरती दीख़ती है, लगता है ज॑से विलासगत प्रिया की साड़ी नीचे सरकती चली गई हो ॥ अलका के ऊँचे भवनों पर वर्षा ऋतु में जब रिमशिम वरसते धु्वा-से मेंघ जा बैठते है तव वे ऐसे लगते हैं जैसे कामिनियों के मस्तक पर मोत्तियों के जाल




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