शंकराचार्य जीवन चरित्र और उनकी सिद्धान्तिनी | Shankarachary Jeevan Charitr Or Unke Sidhantni
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
266
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ९७ ]
; धमकी रक्षा लौर अधर्को अपसारित करनेके लिये स्वयं भग-
} चान् अन्म हेते ह--मथवा अपनो विरिष्ट॒ विभूतिको लंन्म देकर
संसारका परित्राण करते हैं। র
जिस समय शहूर-स्वामीका जन्म हुआ--उस्त समय धर्मके
लीलाक्षेत्र भारतवषमें छोग धर्मसे विमुख हो रहे थे । नास्तिक, बौद्ध,
घर्मके प्रभावले सनातन हिन्दू-धर्म विल॒प्रप्राय हो रहा था। वेद और
धम-मार्गको परित्याग कर भारतवासी विपथगामी हो रहे थे। धर्मके
नाम पर ताना प्रकारके भलयाचार किये जा रे थे । सद्ध्मकी प्रकर-
रेखाके अस्तमित होनेका उपक्रम हो रहा था । परम कल्याण प्रदाय
भारत, शुभ धर्मका आश्रयस्थल दिन्दू-समाज, अनार्यं भावके गाद्
अन्धक्रारसे आच्छन्न ह्यो गया था। छिसी मदापुरूपके आनिर्भावके
छिये भारतभूमि न्याङुढ हो रदी थी। उसी सनातन वेदिक-धर्मकी.
হ্যা चयि, पतित मारतके उद्धारक हेतु, माचा शक्कर भारतभूमि
में अवतीर्ण हुए । उन्होंने छुप्त होते हुए भारत-घधर्मकी रक्षा की। अपने
को उघ कामके लिये न््यौछावर कर दिया । उन्हीं ऽङ्कुरचार्यको जव-
तार समझ कर-कौन हिन्दू-सन्तान है, जो पूजा करनेमें कुण्ठित हो ९
अवतार रूपमे अविभूत होकर अनेक मद्गापुरप अनेक महत्-कार्य
साधन करते हैँ । किन्तु उन महत् का्योंमें भी धर्म-रक्षा सर्वश्रेष्ठ है।
क्यो क धरमेकी स्थापना, धर्मकी रक्षा करना--भगवान्का अपना-
कार्य है। धमके आधार पर जगत् स्थित है । धर्म ही जगतकी वास्त-
विक सौर एच मात्र उन््नतिका व्यापार है | सजन-व्यापार ओर उत्क-
धंग-प्रक्रिया एक ही वस्तु है और धम ही उस उत्कषेणका मुख्य उपाय
६1 जगती दु दैत्योनि रना नहीं दी । यह तो परमन्ञानमय्,
दयामय, प्रेममय भगवानूका स्ट न्यापार दै । मङ्गढ दी जगतका
उद्देश्य है---और कल्याण दी जगतक्वी परिणति दै । इसलिये कल्या-
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