शंकराचार्य जीवन चरित्र और उनकी सिद्धान्तिनी | Shankarachary Jeevan Charitr Or Unke Sidhantni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ९७ ] ; धमकी रक्षा लौर अधर्को अपसारित करनेके लिये स्वयं भग- } चान्‌ अन्म हेते ह--मथवा अपनो विरिष्ट॒ विभूतिको लंन्म देकर संसारका परित्राण करते हैं। র जिस समय शहूर-स्वामीका जन्म हुआ--उस्त समय धर्मके लीलाक्षेत्र भारतवषमें छोग धर्मसे विमुख हो रहे थे । नास्तिक, बौद्ध, घर्मके प्रभावले सनातन हिन्दू-धर्म विल॒प्रप्राय हो रहा था। वेद और धम-मार्गको परित्याग कर भारतवासी विपथगामी हो रहे थे। धर्मके नाम पर ताना प्रकारके भलयाचार किये जा रे थे । सद्ध्मकी प्रकर- रेखाके अस्तमित होनेका उपक्रम हो रहा था । परम कल्याण प्रदाय भारत, शुभ धर्मका आश्रयस्थल दिन्दू-समाज, अनार्यं भावके गाद्‌ अन्धक्रारसे आच्छन्न ह्यो गया था। छिसी मदापुरूपके आनिर्भावके छिये भारतभूमि न्याङुढ हो रदी थी। उसी सनातन वेदिक-धर्मकी. হ্যা चयि, पतित मारतके उद्धारक हेतु, माचा शक्कर भारतभूमि में अवतीर्ण हुए । उन्‍होंने छुप्त होते हुए भारत-घधर्मकी रक्षा की। अपने को उघ कामके लिये न्‍्यौछावर कर दिया । उन्हीं ऽङ्कुरचार्यको जव- तार समझ कर-कौन हिन्दू-सन्तान है, जो पूजा करनेमें कुण्ठित हो ९ अवतार रूपमे अविभूत होकर अनेक मद्गापुरप अनेक महत्‌-कार्य साधन करते हैँ । किन्तु उन महत्‌ का्योंमें भी धर्म-रक्षा सर्वश्रेष्ठ है। क्यो क धरमेकी स्थापना, धर्मकी रक्षा करना--भगवान्‌का अपना- कार्य है। धमके आधार पर जगत्‌ स्थित है । धर्म ही जगतकी वास्त- विक सौर एच मात्र उन्‍्नतिका व्यापार है | सजन-व्यापार ओर उत्क- धंग-प्रक्रिया एक ही वस्तु है और धम ही उस उत्कषेणका मुख्य उपाय ६1 जगती दु दैत्योनि रना नहीं दी । यह तो परमन्ञानमय्‌, दयामय, प्रेममय भगवानूका स्ट न्यापार दै । मङ्गढ दी जगतका उद्देश्य है---और कल्याण दी जगतक्वी परिणति दै । इसलिये कल्या-




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