छठा बेटा | Chhata Beta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सेये हुए हूँ कि यदि उनका छठा वेद होता तो वह अवश्य उनकों सेवा
करता । जब कि यथार्थ में यह वात नदीं है) वृद्ध देत्वामास
(58515 £811505) হী ইজ লাতন্ষ का आधार-्मूत-तत्व है। छठा बेटा
मानव की उस आकांक्षा का प्रतीक है जो कभी पूरी नहीं होती |
श्रश्क जी बहुत सतक कलाकार ई ! उनकी स्वना मे लापरवाही या
ध्यलने का भावः की मी नदर दख पडता । श्रपने श्रालोचकों को उगली
उठाने का अवसर वे कहीं भी नहीं देना . चाहते | प्रस्तुत नाटक में भी
उन्हें यह ध्यान बराबर है कि कथानक का सुख्य-भाग पंडित जी के स्वप्र
के रूप में रगर्मंच पर उपस्थित किया जा रहा है श्रोर वे इस बात को
भी जानते हैं कि स्वप्त कमी स्पष्ट ओर क्रमपूणं नदीं दयता, बल्कि हमेशा
উঘলা (৮5৪4০) গ্ীত अ्रस्पष्ड-सा होता है । कहीं पर बहुत चटक श्रौर
कहीं अत्यन्त शाउट ऑफ़ फ़ोकस! | रंगमंच टेकनीक का भी उन्हें
अपने आलोचकों से अधिक ज्ञान है। ओर यहीं कारण है कि उन्होंने
नाटक का अन्तिम दृश्य छायाओरों के रूप में उपस्थित किया है| क्योंकि
स्व॑श्न वरावर जारी है ओर अब समाप्ति पर है, इस कारण यह छुंघला
और श्रसष्ट-सा पड़ने लग जाता है । व्यक्ति नहीं, वल्कि छाया-मूर्तियाँ
अब स्वप्न में घूमने-फिरने लगती हैँ ओर केवल उनके स्वर से ही अनुमान
किया जा सकता है कि यह अमुक-अ्रमुक व्यक्ति हैं | ग्रश्क जी के इस
रूवं नाटकीय - कौशल (8:8४० ८:०६) पर उन्हें बधाई देने की इच्छा
होती हैं | हिन्दी नाठकों में यह अपने ढंग का एक नवीन श्रयोम है |
नाटक इस छाया-मय-कथा, उसे युष्ट करने वाले हास्य व्यस्य
पूर्ण सम्बादों तथा अभिनय-स्थल्रों के वल्ल पर बड़ी तेजी से चलता हुआ
हमारी उत्सुकता को चम -विल्ठु पर ले जाकर अत्यन्त श्रप्रत्याशित रूप हें
समाप्त हो जाता है | एक कर हमें आवाद ता लगता है | फिर एक ल
साँस-कुछ सुख की; कुछ दृद् छी-हमारे अन्तर की गहराई से कि लि
जाती है ओर दम तर লই লি লট हुए घर चले श्ाते हैं । তি তল
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