मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र | Mere Divangat Mitron Ke Kuch Patra

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Mere Divangat Mitro Ke Kuch Patra by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किचित्‌ प्रावक्रथन १३ है। दुर्भाग्य से यह काम सूर्ते रूप घारण नही कर सका और उनका नअकाल ही में स्वर्गंवास हो गया । ७--पत्न संग्रह में सातवां स्थान स्वर्गीय डं० हीरानंद शास्त्री ७४, 0. 1,, के पत्रों का है। डॉ० हीरानद शास्त्री पंजाब के रहने चाले थे। भारतीय सरकार के पुरातत्व विभाग में कई स्थानों पर उन्होने क्धिकारी के रूप मे काम किया । सन्‌ १६२१-२२ में तीथथेयात्रा के प्रसग मे मेरा विहार के राजगृही तथा नालंदा तीर्थ स्थानों मे जाना हुआ था। उस समय डॉ० हीरानद शास्त्री नालन्दा के प्रख्यात पुरा- वेषो की खुदाई का काम करवा रहे थे। वही उनसे मेरी भेट हुई । यो वे जैन साहित्य संशोधक तथा विज्ञप्ति त्रिवेणी जादि मेरी लिखी हुई पुस्तको से परिचित थे । विज्ञप्ति त्रिवेणी में मैंने कागडा के विलुप्त प्रायः तथा सर्वथा अज्ञात जैन तीथं का विस्तृत परिचय प्रकाशित किया था जिसे पढकर उनके मन मे मेरे साहित्यिक कार्या के जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई थी। प्राचीन जैनाचार्यो के जीवन चरित्र से सम्बध रखने वाला “प्रभावक चरित--...नाम का एक ससूुकृत प्रथ का उन्होने स्व० जैन आचार्य श्री विजय वल्लभसूरी की प्रेरणा से, संपादन किया था, परन्तु जैन लिपि तथा पद्धति का ठीक परिचय न होने से उक्त सपादन मे बहुत सी अशुद्धि्यां रह्‌ गयी थौ 1 नालदा मे जब उनसे भेंट हुई तो उन्होंने मुझ से कहा कि आप इस ग्रस्य को ठीक से शुद्ध कर देने की क्पा करें तो मैं उसे पुनः प्रकाशित करना चाहूँगा। इत्यादि । कुछ वर्षो बाद वे बडौदा के राजकीय पुरातत्व विभाग के डाय 'रेक्टर बनकर वहाँ आ गये थे और पाटन के प्रसिद्ध सहर्ख़लग सरोवर की खुदाई का काम शुरू किया था। उस समय उनसे विशेष परिचय हुआ । मेरा उन दिनो अहमदाबाद रहना होता था इसलिये वे बड़ौदा से कई वार मिलने भी आये थे। कुछ प्राचीन विजप्ति पत्नो का वे संपादन करना चाहते थे | उस विषय मे अपेक्षित सामग्री का सकलन




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