मानव जीवन का लक्ष्य | Manav Jeevan Ka Lakshya
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
560
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मानय-जीवनका लक्ष्य--भगवदत्याप्ति १५.
अपने घरमें झाड़ू छगाओ । गंदी झाड़ू लेकर दूसरेका मकान
साफ करने जाओगे तो वहाँ मी गंदगी ही फेलाओगे; सफाई तो
कट्ठोंसे करोंगे ? अपना हृदय पहले साफ ऐना चाहिये।
हृदयवी खच्छताकी कसौटी व्या है-- मने शान्ति, प्रसन्नता,
त्याग, वैराग्य, सौम्यता, असा, सत्य, प्रेम, इन्द्रिय-निग्रह, सर्ता,
समता, निरमिमानिता, नप्ता; भगवान्के प्रति चित्तकी चृत्तिका
प्रवाह, संसारम उपरति दथा देवी-सम्पत्तिके अन्यान्य सदृगुणोका
होना । वह व्यक्ति भाग्यवान् है, जिसके जीवनम संसार भगवान्कै
रूपके अतिरिक्त आता नदीं ओर जरूरत पडइनेपर कठिनतासे कना
पड़ता है । वह देखता है कि जगत् तो है नहों । गीताका असछी
ममे भगवानने बताया कि जगत वास्तवे केव मगान् पूरण
है-+वाखुदेवः सवंमिति ! यह जगत् जो दीव रहा है, ऐसा यह
प्राप्त नहीं ह्येता, क्ष्योंकि ऐसा है नहीं ।
हिनेमा देखते समय पर्देपर सारा ससार दिखायी देता है, पर
पकड़नेपर हाथमें नहीं आता | इसी प्रकार यह संसार नो दीखता है,
वह दीखता भर है--मिलता नहीं---
न तथ।( उपरम्यते 1?
हसीलिये कि यह मायास्ना राज्य है| अज्ञानकी करपना
है । इसमे मनको फसा केना स्वता है | पढा या बेपढा,.
जो भी फसता है, वह मखे ही है । भपटित पख॑ता करता है
परंतु उसमे श्रद्वके सहज जाग जनेकी सम्भावना है | अत
वह राहपर आ सक्ता है । किंतु शिक्षित मर्ख तो प्रायः জন
होता है । शिक्षितकी मति विगइनेपर वह জন্তু हो जाता है!
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